गीता विज्ञान भाष्य - भूमिका | Geeta Vigyan Bhashya - Bhumika

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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व्यय कृप्सावतार पूण पुरुप के श्रननुप्रश से ही आज हम श्पन गीतप्रिमियों के सम्मुख गीताविज्ञानभाष्यभूमिका का. बहिरज्परीक्षात्मक प्रथमखण्ड उपस्थित करने में समथ होसके हैं । थाशा है नवीन दृष्टि को ( नहीं नहीं सब्रया प्राचीन दृष्टि को ) श्पपना लक्ष्य वनाने वाली यह भाष्यमू- मिक्का पाठकों के मनोरप्लन के साथ साथ उन्हें गीता के किसो अआपूर्व सिद्धान्त का अनुगामी वनावेगी । जयपुर के प्रधान राजपशिडत विद्यावाचसति समीक्षाचत्वत्ती गुरुवर श्री१ ०८ श्रीमघुमूदननी श्रोका के पवित्र नाम से एवं उनकी विज्ञाननिधि से कोई भी भारतीय वि- द्वान्‌ अपरिचित न होगा । श्रापने भारतीय साहित्य पर विशेषतः वैदिक साहित्य पर संस्कृत वाड़मय में लगभग २८८ खतन्त्र ग्रन्थ लिखे हैं। १०-१२ प्रन्थयो कोछोड़ का शेष ग्रन्थ प्रकाशित वस्था में रहते हुए हमें श्रमिशाप ही दे रहे हैं । पूज्य छोकाजी ने गीता पर एक खत-त्र भाप्य लिखा है। यह भाष्य चार काणड़ो में विभक्त हुआ है।रहस्य-श पऊ-ग्राचार्प-टदय मेद से काएडचतुश्यात्मक इस भाष्य ने सचमुच गीता के सम्बन्ध मैं एक श्रपूर्व युग उपस्थित कर दिया है । जैसा कि श्ञाज सरवस धारण पें गीन्प के सम्बन्ध में कर्म्म- भक्ति -ज्ञानयोग नामझ तीनो सिद्धान्तो में पास्पर अइमहमिक्षा चल री है इसके विरुद्ध माष्यकार की श्र से सर्वथा अपूर्व एव एकान्तः रहत्यपूरा लुप्तप्र यघुद्धियोग सिंद्धान्त स्थापित हुआ है । श्रद्रेतचादी गीता को ज्ञानयोगशाख्र मान रहे है स म्प्रदायिकों की दृष्टि में गोता भक्ति- योगशाख्र है एवं कल्पनारमिक कुछ एक श्रवीचीन राष्ट्रवादियों नें इसे कर्म्मयोग शात्र मानने का




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