गीता की भूमिका | Geeta ki Bhumika

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Geeta ki Bhumika by देवनारायण द्विवेदी - Devnarayan Dwivedi

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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पात्र ] स एवाये सया तेहद्य योग: प्रोक्त: पुरातनः । भक्तोदसि में सखा चेति रहस्य छातदुत्तमू 1 अथॉत्‌--वहद पुराना छिपा हुआ योग हमने आज अपना भक्त आर सखा समभ, तुमसे प्रकर किया है। कारण, यह योग संसारका श्र छठ और परम रदस्य है । अठारहवें अध्यायमें सो गोताके केन्द्रस्वरुप कम्मंचोगका सूल सन्त व्यक्त करनेस्तें समय 'सगवचानने इस वातकों ठहराया है । सच गुद्मतमें भऋूयः श्र में परम चचः । इंप्टोहसि में इृड़मिति ततो चच्यामि ते हितम्‌ ॥। “फिर हमारी परम और सबकी अपेक्षा झदातम चातकों खुनो । छुम हमें अत्यन्त प्रिय हो, इसी कारण तुमसे इस श्र मागे च्ी चात हम प्रकट करेंगे ।” इन दोनों न्छोकोंके असिप्राय श्र तिक्रे अनुझछ हैं, जैसा कि कठोपनिपद्सें छिखा हुआ है | नायमात्मा प्रवचनेन लभ्यों न मेघया न चहुना श्रतेन । यमेचेप चुत तेन लग्न्य- रूतरुपव झात्मा बणुते तनु सर्वा ॥ “यह परमात्मा दाशेनिकोंकी ध्याख्या द्वारा भी लय नहीं, मेघाशक्ति द्वारा भी लम्य नहीं, और पूर्ण शास््रज्ञान द्वारा भी ख्स्य नहीं । भगवान जिन्हें वरण करते हैं, उन्हींको लस्य होते है भोर उन्हींके समीप यह परमात्मा अपना शरीर प्रकट: करते हैं।” अतएव जो लोग भगवानके साथ सख्य इत्यादि मधुर | ६ ]




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