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Hindi by श्री बदरीनाथ भट्ट - Shree Badareenath Bhatt

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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हिंदी श्प्‌ का रूप धारण कर लेगा | हाँ, आगरे की बोली के प्रभाव क कारण 'सह है-सरीखे रूप भी उसमे थाते रहे हैं] इस उदाहरण से यद्द प्रमाणित हो जाता है. कि सडी बोली की क्रियाएं किधर से आई हैं | इनमें से एक रूप ( सहता करता आदि) का बश-इक्षु देखने से अद्धमागवी ओर शौरसेनी का कहीं पता भी नहीं मिलता | ऐसे और भी उदाहरण दिए जा सऊते है । प्राकुत का जो रूप अपती में प्रचलित था उसी से कुछ पजन राजस्थानी की ओर उम्री से मिलते जुलते एक और रूप ( गौजरी ) से गुजराती की उसपत्ति भानते हैं | इसमे संदेह नहीं जि राजस्थानी और गुजराती का तुलनात्मक अध्ययन करने से दोनों का निऊास एक ही स्थान से हुआ दाखता है । राजपूताने के कुछ भागा की वोली तथा इधर मालबा-आत की नोली से गुजराती की बहुत अधिक समता है | इससे उपर्युक्त सिद्धात की ओर भी पुष्टि होती हे | अज-भापा आर राजस्थानी में जो समता दौखती है उसका कारण इन दोनों ही का नागर अपक्षश से उत्पन्न द्वीना द्वो सकता है, क्योंकि शौरसेनी को मी कुछ विद्वानों ने नागर अपभ्रर का ही एक भेद भाना है | इसी तरह प्राकत का आअवतीयाला रूप भी ( जिससे राजस्थानी की उत्पत्ति हुई बतलाई जाती है ) नागर अपक्रश का ही एक भेद कहा जाता है । पूर्वी हिंदौ-- श्रैमवाडी ( मिसको अवधी भी कहते हे ) और बयेलखड




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