हिंदी आलोचना अतीत और वर्तमान | Hindi Alochana Ateet Aur Vartman
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
9.97 MB
कुल पष्ठ :
73
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)हिन्दी आलोचना --अतीत | ४. मण्डनात्मक तर्क॑ पेश किये गये । दोनों में कौन-सा केवि श्रष्ठ है यह निणंय देने का काम आलोचकों ने अपने ऊपर ले लिया । इस तरह के विवाद तब से हिन्दी में चल रहे हैं। बाद में निराला और पंत की या प्रेमचन्द और प्रसाद की आजकल अज्ञय और मुक्तिबोध की कविता की तुलना करने का मोह कई आलोचकों को हुआ और हो रहा है। यहाँ तक कि महावीरप्रसाद द्विवेदी और रामचन्द्र शुक्ल की रामचन्द्र शुक्ल और हुजारीप्रसाद द्विवेदी की भी तुलनाएँ प्रस्तुत की गयी हैं । यह एक और विषय है जिसकी ओर मैं अभी केवल इशारा कर रहा हूं । वतंमान आलोचना के सिलसिले में मैं इस तरह की साहित्यिक तुलना की सीमा और सामध्यं की चर्चा बाद में करूँंगा। शोधपरक आलोचना नागरी प्रचारिणी पत्रिका के आरंभिक अंकों में चंद्रधर शर्मा गुलेरी के जयपुर से निकले समालोचक में आलोच्य लेखक या कवि ग्रंथ या रचना काल या प्रवृत्ति पर गहराई से विचार करने लगी । यहाँ ध्यान रखने की बात है कि अब साहित्य- कर्म केवल संस्कृत पंडित या शौकीन रईस या साहित्य के अध्यापक- वर्ग तक सीमित नहीं था । भाषा विज्ञान इतिहास .दर्शन समा जशास्त्र मनोविज्ञान नृतत्त्वविज्ञान कला इतिहास आदि विभिन्न विद्या- शाखाओं से आने वाले कई तरह के समालोचक हिन्दी में आने लग गये । उनकी नामावली ही दें तो पचासों विद्वज्जन द्विवेदी-युग में दिखाई देंगे । सुधाकर द्विवेदी और चन्द्रधर शर्मा गुलेरी पारसनाथ त्रिपाठी मुकुन्दी लाल वर्मा सिद्धश्वर वर्मा संतराम बी ० ए० सत्य- देव परिव्राजक संपूर्णानन्द काशीप्रसाद जायसवाल राहुल सांकृत्यायन वासुदेवशरण अग्रवाल गौरीशंकर हीराचन्द ओझा अंबिकाप्रसाद वाजपेयी जगन्नाथप्रसाद चतुर्वेदी शालिग्राम द्विवेदी जेसे कई नाम सहज याद आते हैं । जहाँ साहित्यिक पत्न-पत्रिकाएं कलकत्ता कानपुर खण्डवा प्रयाग जयपुर शाहाबाद पटना से प्रकाशित होने लगीं--समालोचना का विस्तार और बढ़ा । सरस्वती समालोचक इंढु प्रभा पाटिलपुत्र का योगदान हम भुला नहीं सकते जो १४०० से १८१८ तक बराबर प्रकाशित होने लगी थीं । लोकमान्य तिलक ने १७०८ में अपने पत्न केसरी के हिन्दी केसरी का प्रकाशन आरम्भ कर दिया था |
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