हिन्दी गद्य संग्रह | Hindi Gadya Sangrah

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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कझट्ठानी-लेखफ 4] करके में अपने द्वाकिम का दिमाग, झधिक भोजन से मेदे की वरह, विगाड़ना नहीं चाहवा । उनकी युक्ति-युक्त बात सुनकर मैंने फहा--ठीक । खाली समय में उपन्यास पढ़ने का चसका कालेज में हीं पड़ चुका था; उन्हीं दिनों अमेरिका के एक पत्र में, जे चुभते हुए उपन्यास लिखने में अपना जवाब नहीं रखता था, पढ़ा-- कहानी लिखनेवालों का ज्यवसाय श्राज-कल खूब चमक रहा है। जिसकी जैसी योग्यता द्वेती है वह इस पेशे से उतना ही पैदा फर लेता है! योरप में फट्दानी-लेखक लाखों रुपया पैदा कर रहे हैं; भार तरद् फे व्यवसायों में अ्रनेक फट हैं । उनमें धन की आ्रवश्यकवा, उपकरण की झ।वश्यकवा, मुमीकें और नौकरों की भ्रावश्यकता और सबसे बढ़कर मौफे की जगह की श्रावश्यकता द्वोती है; पर कहानी लिखनेवाले को मुलायम पेंसिल श्रौर व्यवसाय चमक जाने पर फाउनटेन पेन और कागज के सिवा प्रौर किसी बाहरी उपकरण की अ्रावश्यकता नहीं है। उसी लेख में, आगे चलकर, लिखा था कि फंस के एक लेखक फे पास झाठ-दस क्वॉरी लड़कियाँ क्‍यों, युव- ' तियाँ, नौकर हैं। थे अपने-भपने समय पर झाती हैं और कहानी लिखनेवालों फा वह्द आचार्य्य उनमें से हर एक को * एक-एक कद्दानी लिखवा देता है। इस तरह आाठ-दस कहा- नियाँ लिखकर बद् आाठ-दसस किद्दानी कददनेवाले! पंत्रों को पेट भरने फे साथ दी साथ 'मपनी जेब भरता है ।




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