गीता की विभूति और विश्वरूप दर्शन | Gita Ki Vibhuti Aur Vishav Roop Darshan
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
4.69 MB
कुल पष्ठ :
290
श्रेणी :
यदि इस पुस्तक की जानकारी में कोई त्रुटि है या फिर आपको इस पुस्तक से सम्बंधित कोई भी सुझाव अथवा शिकायत है तो उसे यहाँ दर्ज कर सकते हैं
लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
No Information available about स्वामी रामसुखदास - Swami Ramsukhdas
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)[णते ततः स॒विस्मयापिष्टों दुप्रोमा धनंजयः | अणम्य शिरसा देव॑ क्तात्झलिरभापत ॥१४॥। अर्जुन उवाच सश्यामि देवास्य देव देहे स्ोलथा ... भृतनिशेपसंघान्। अदयाणमीसं कमलासनस्थ- सर्पी् सर्पाचुरगाश्र दिव्यानू ॥ १ै५॥| अनेकबाइद्रवक््तनेत्र पश्यामि त्वा सपतोज्नन्तरूपमू । नान्त॑ं न मध्य न. पुनस्तवादि पश्यामि मिश्वेश्वर घिश्रूप ॥१९)) फिरीटिन गदिन॑ चक्रिण च तेजोराधिं सर्पतो दीसिमन्तम् । पद्यामि त्वा दुर्निरीक्ष्य॑ समन्ता- दीसानलाफंचतिमप्रमेयमू.. ॥१७॥ स्वमक्षर परम... बेदितव्यं स्पमस्थ रिश्वस्स पर निधानम् । स्वमव्यय... शाश्यतधमंगोप्ता .. सनातनस्त्व॒ पुरुपों मतों मे ॥१८॥| अनादिमध्यान्तमनन्तवीर्य मनन्तयाहु ... चाधिस्र्नेत्रमू ।
User Reviews
No Reviews | Add Yours...