स्वाध्याय - माला भाग - 1 | Swadhyay Mala Bhag - 1
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
2 MB
कुल पष्ठ :
144
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
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धांपानुषोद-दोडा--
गुण,शत से झाकीय हो, घर्म शक्ल का श्यांव!
करके घाति रूम ज्ञय पाये केवल शान ॥ १४ ॥
भाषानुधाद-इस प्रकार अनेक गुर्णों से परिपूर्ण प्रभु॒ भरे
्यान और शुक्त ध्यान में तसलीन रदे थे, शिससे घादि कर्म
जय कर केयहा क्षान को प्राप्त किया ।
मूख--यीभरटागे झर निग्गंथे, सुब्यनू सम्यद्सणी |
देविद दाणविंदेदि, निव्धित्तिव मद्दामदे 1१५॥
छापालुधाद
परनिेधःथ भौए गतरागी दो, तुप पूर्ण॑शान दर्शन घारी।
खुर भछर पति ने परम शान की, मद्दिमा की दै सुखकारी ॥१५४
भाषासुधाद--राम द्वप से रहित होने के कारण आप धीत-
शाग हैं। सप्रद् नहीं करने से निप्रःथ हैं। केपल शान प्राप्ति के
समप देव और दानवों के इद्मों से जिनका मदोत्सथ किया
न्गया है, ऐसे आप सर्घश्ध और सबदर्शी हें 1
मुक्त--सब्धभालाएंगाए य, भासाए सब्व सस्लपु 1
झुगबव सन्य जीवायण, छिंदई मिन्न मोपरे ॥ १६॥॥
छापान॒बाद
जीपमाश्र के विविध विषय सशप सथघ झ्लाथ मिटा देते
खप्र जीवों के को दो योग्य, माषा से सद को दपति॥ १६।९
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