उज्ज्वल प्रवचन | Ujjawal Pravachan

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Ujjawal Pravachan by रत्नकुमार जैन - Ratnkumar Jain

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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बुद्ददेव १० 'भ० बुद्ध ने फिर से मापव समात्र को एक करने के छिये जम ज्ञातिवाद का र्रेष जिया और शुण तथा चारि ये का महत्व बताते हुए उ झोने नकद्दा-+ न जच्चा बसलो होती न जच्चा होति वभ्मणों । कृम्मण वसलो होति, कम्मणों होति उम्मणों । -+ताति से कोई बआक्मण या दूद पहीं तेता, कर्म से ही ब्राक्षण या भझद्र होता है । जातिाद का शेग जातैवाद फा यद रोग मानय समाज को इतारों उ्पों छे लगा हुआ है, तो हि आन भी दूर नहीं हुआ है। विद्वर में ' मद? और हु? नाम की सो जाति ई जो असने मित्र हमरे को मनुष्य दी नहीं मानती । वह आक्षणों से भी अधिक छूआदृत का सयथाछ रखती ६। वह छुत्ते का छुआ छा सकती हैं, पर अक्मण के द्वाथ का पानी हीं पा सकती | एकबार पिद्वार में जत्र दुष्वाछ पय था, तय उठ जाति के छुछ रोग भी एक शा ते भोजनाल्‍थ में मोतय फरने आया करते थे | एक दिन जय -1 भोचन फर रहे थे, तब एक लिस्ली फ्रोटोग्रापर उनका फ्रोट्ट लेने के लिये बह ता पहुँचा । उसने वह जैठे ही पैर रखः वैस दी वे लोग अपना मोजन छोड कर मांग गये | यद्द जातैबाद का ऊँच नाच का रोग है, निधद्ने लिये २० महावीर और जुद्द की शिक्षा दवा राम बाण औषधि दे । पयुयज्ञ के पिदोध में बुद्ध का साहस उस समय पशु यश में घम माना चादा था। निर्दोष पशुओं को यंत्र मे बढ़े दो जाती थी | इससे दूसरी तरफ पशुओं की कमी पड़ने हे खेही में जो नुकसान द्ोठा था उमका परिणाम माँ मानवन्समाज को ही भोगना पड़ता था । इए पद्च यज का यिरेध करना और इसके डिये गह्ठा




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