उज्ज्वल प्रवचन | Ujjawal Pravachan
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
1 MB
कुल पष्ठ :
102
श्रेणी :
हमें इस पुस्तक की श्रेणी ज्ञात नहीं है |आप कमेन्ट में श्रेणी सुझा सकते हैं |
यदि इस पुस्तक की जानकारी में कोई त्रुटि है या फिर आपको इस पुस्तक से सम्बंधित कोई भी सुझाव अथवा शिकायत है तो उसे यहाँ दर्ज कर सकते हैं
लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)बुद्ददेव १०
'भ० बुद्ध ने फिर से मापव समात्र को एक करने के छिये जम ज्ञातिवाद
का र्रेष जिया और शुण तथा चारि ये का महत्व बताते हुए उ झोने
नकद्दा-+
न जच्चा बसलो होती न जच्चा होति वभ्मणों ।
कृम्मण वसलो होति, कम्मणों होति उम्मणों ।
-+ताति से कोई बआक्मण या दूद पहीं तेता, कर्म से ही ब्राक्षण या
भझद्र होता है ।
जातिाद का शेग
जातैवाद फा यद रोग मानय समाज को इतारों उ्पों छे लगा हुआ
है, तो हि आन भी दूर नहीं हुआ है। विद्वर में ' मद? और हु? नाम
की सो जाति ई जो असने मित्र हमरे को मनुष्य दी नहीं मानती । वह
आक्षणों से भी अधिक छूआदृत का सयथाछ रखती ६। वह छुत्ते का छुआ
छा सकती हैं, पर अक्मण के द्वाथ का पानी हीं पा सकती | एकबार
पिद्वार में जत्र दुष्वाछ पय था, तय उठ जाति के छुछ रोग भी एक
शा ते भोजनाल्थ में मोतय फरने आया करते थे | एक दिन जय -1 भोचन
फर रहे थे, तब एक लिस्ली फ्रोटोग्रापर उनका फ्रोट्ट लेने के लिये बह ता
पहुँचा । उसने वह जैठे ही पैर रखः वैस दी वे लोग अपना मोजन छोड
कर मांग गये | यद्द जातैबाद का ऊँच नाच का रोग है, निधद्ने लिये
२० महावीर और जुद्द की शिक्षा दवा राम बाण औषधि दे ।
पयुयज्ञ के पिदोध में बुद्ध का साहस
उस समय पशु यश में घम माना चादा था। निर्दोष पशुओं को
यंत्र मे बढ़े दो जाती थी | इससे दूसरी तरफ पशुओं की कमी पड़ने हे
खेही में जो नुकसान द्ोठा था उमका परिणाम माँ मानवन्समाज को ही
भोगना पड़ता था । इए पद्च यज का यिरेध करना और इसके डिये गह्ठा
User Reviews
No Reviews | Add Yours...