स्वाध्याय - माला भाग - 1 | Swadhyay Mala Bhag - 1

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Swadhyay Mala Bhag - 1 by रत्नकुमार जैन - Ratnkumar Jain

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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(9) धांपानुषोद-दोडा-- गुण,शत से झाकीय हो, घर्म शक्ल का श्यांव! करके घाति रूम ज्ञय पाये केवल शान ॥ १४ ॥ भाषानुधाद-इस प्रकार अनेक गुर्णों से परिपूर्ण प्रभु॒ भरे ्यान और शुक्त ध्यान में तसलीन रदे थे, शिससे घादि कर्म जय कर केयहा क्षान को प्राप्त किया । मूख--यीभरटागे झर निग्गंथे, सुब्यनू सम्यद्सणी | देविद दाणविंदेदि, निव्धित्तिव मद्दामदे 1१५॥ छापालुधाद परनिेधःथ भौए गतरागी दो, तुप पूर्ण॑शान दर्शन घारी। खुर भछर पति ने परम शान की, मद्दिमा की दै सुखकारी ॥१५४ भाषासुधाद--राम द्वप से रहित होने के कारण आप धीत- शाग हैं। सप्रद् नहीं करने से निप्रःथ हैं। केपल शान प्राप्ति के समप देव और दानवों के इद्मों से जिनका मदोत्सथ किया न्गया है, ऐसे आप सर्घश्ध और सबदर्शी हें 1 मुक्त--सब्धभालाएंगाए य, भासाए सब्व सस्लपु 1 झुगबव सन्य जीवायण, छिंदई मिन्न मोपरे ॥ १६॥॥ छापान॒बाद जीपमाश्र के विविध विषय सशप सथघ झ्लाथ मिटा देते खप्र जीवों के को दो योग्य, माषा से सद को दपति॥ १६।९




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