ग्रन्थ - परीक्षा भाग - 3 | Granth-pariksha Bhag - 3
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
1 MB
कुल पष्ठ :
33
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
जैनोलॉजी में शोध करने के लिए आदर्श रूप से समर्पित एक महान व्यक्ति पं. जुगलकिशोर जैन मुख्तार “युगवीर” का जन्म सरसावा, जिला सहारनपुर (उत्तर प्रदेश) में हुआ था। पंडित जुगल किशोर जैन मुख्तार जी के पिता का नाम श्री नाथूमल जैन “चौधरी” और माता का नाम श्रीमती भुई देवी जैन था। पं जुगल किशोर जैन मुख्तार जी की दादी का नाम रामीबाई जी जैन व दादा का नाम सुंदरलाल जी जैन था ।
इनकी दो पुत्रिया थी । जिनका नाम सन्मति जैन और विद्यावती जैन था।
पंडित जुगलकिशोर जैन “मुख्तार” जी जैन(अग्रवाल) परिवार में पैदा हुए थे। इनका जन्म मंगसीर शुक्ला 11, संवत 1934 (16 दिसम्बर 1877) में हुआ था।
इनको प्रारंभिक शिक्षा उर्दू और फारस
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)[ १३]
इस प्रदर्शन से यह स्पष्ट जाना जाता है कि सोमसेनजी इन क्रिया
मंत्रों को ऐसे आार्ष मेत्र नहीं समझते थे जिनके अक्षर जैंचेतुल अबया
गिने छुने: द्वोते हैं और जिनमें भक्तों की कमी बेशी शादि के कारण
कितनी ही बिडम्बना होजाया करती दै अथवा यों कहिये कि यथेष्ट फल
संघादेत नहीं द्वोसकता । वे शायद इन मंत्रों को.इतना साथारण समझते
ये कि अपने जैसों को भी उनके परिवर्तन का अधिकारी मानते ये |
यही बजह दै जो उन्होंने उक्त दोनों मंत्रों में और इसी तरह और भी
बहुत से मंत्रों में अपनी इच्छानुसार तबदीली अथवा न्यूनाध्रिकृता की
है, जिस सबको यहाँ बतलाने की भ्यावश्यकता नहीं है । मंत्रों का भी
इस प्रंथ में कुछ ठिकाना नद्दी--अनेक देवताओं के पूजा मंत्रों को
छोड़कर, नहाने, धोने, कुलला दतिन करने, खाने, पीने, वत्र पहनने
चलने फिरने, उठने बैठने और हगने मृतने आदि बात बात के मंत्र पाये
जाते हैं-मंत्रों का एक खलसा नज़र आता है-और उनकी रचना का
ढंग भी प्रायः बहुत कुछ सीधा सादा तथा आसान है| ३०, हीं, अद्द
स्वाद्य आदि दो चार अच्तर इधर उधर जोड़ कर और कहीं कहीं
विशषण प्रद भी साथ में लगाकर संस्कृत में बह बात कद्ददीगई दे
जिस विपय का कोई मंत्र है | ऐसे कुछ मंत्रों का सारांश यदि हिन्दी
में दे दिया जाय तो पाठकों को उन मंत्रों की जाति तथा प्रकृति भादि
सममने में वहुत कुछ सद्दायता मिलेगी । शतः नौचे ऐसे दी कुछ
, मंत्रों का हिन्दी में दिग्दशन कराया जाता है---
१ ऊँ हीं, हे यहाँ के क्षेत्रपाल | क्षमा करो, मुझे मनुष्य जानो,
इस स्थान से चले जाओ, मैं यहाँ मल मूत्र का त्याग करता हूँ, स्वाहा |
२ ऊँ. इन्द्र के मुकु्ों की रुनप्रमा से प्रध्वालित पाद प्रग्म शरई-
स्तमगवान को नमस्कार, में शुद्ध.जल से पैर धोता हैँ, स्वाद्दा |.
'इऊँदड्डीची। >४८पमेंद्वाप धोता हूँ, स्वादा |. «,
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