प्रतिमानाटकम | Pratimanatkam

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Pratimanatkam by परमेश्वरानन्द - Parmeshwaranand

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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यद्याश्वार द्धि जज ला कः । रे मयूर * रे है चह्याश्राराश्रकरामिकर: णपूरो मयूरों . धर ह डक टानपाजण हे प्रफना सम: कविकल हुक ८ | से कर नासा हालत: कविकुछगुरु: कालिदासो विलासे: । हवा हवा हृदयबसति: पत्चनवाणश्व वाण: केषां नंघा कथय कविताकामिनी कातुकाय ॥ + ( प्रसन्नराघव ) अस्ठुत अतिसा-नाटक के कर्ता भास को कविवर जयदेव ने उक्त पच्च में कविता-कामिनी का हास मानकर पशंसित किया है । इससे निश्चित . होता है कि आचीन काल में भास साधारण जनता में ही नहीं अपितु संसक्ृत भारती के उच्च कवियों में भी बड़े आऔतिभाजन थे और उनकी . रचनाएँ रसिक-समाज सें विशेष चुलबुराहट पेदा करने वाली हुआ करती . थीं। दु्भाग्यवश ऐसे उत्कृष्ट कवि ओर डनकी रचनाओं को हम भूल 1. खो छा. आथ ; बठ थ | प्रछोकगत पं० गणपति शाख्री ने अनेक प्राचीन मन्थों का उद्धार किया। : अपने परिश्रम के फलरूप उन्होंने वे वे अन्य-रत्र सुरुभ किये, जिनका नाम तक बड़े बड़े विद्वान भूछ गये थे। सच १९१२ में उन्होंने तेरह नाटक . अकाशित किये। ये नाटक दूसरे नाटकों से कुछ विलक्षण थे । संस्कृत' नाटकों में कवि अपना परिचय देता है | कालिदास, भवभूति आदि इसी शैली का अनुसरण करते हैं । इन नव-प्रकाशित नाटकों की सूलछ हस्तलिखित प्रतियों सें समाप्ति पर अल्येक नाटक का प्थक्‌ पृथक नाम- निर्देश हुआ रहने से नाम का निश्रय तो हो गया किन्तु इनसे नाटककार का नामोछेख न होने से ऐतिहासिकों के समक्ष एक विक्‌ट समस्या खड़ी हो गईं । पण्डित गणपति शास्त्री ने अन्तरहः बहिरह्ञ परीक्षा कर इन : तेरहों को भासकृत सिद्ध किया है। 33 ननतत 33 +++«न-फ+ नामलम 3५ “न कत+-१५ ४५७७ ५७५७०: 'नननन्‍५+ . # चोर कवि जिसकी अलके हैं, मयूर कवि जिसका कर्णफूल है, भास कवि : जिसका हास है, कविकुलूयुरु कालिदास जिसके हाव-भाव हैं, हर्प कवि जिसके . हृदय का हर्ष है, और बाण कवि तो साक्षात्‌ पद्बसायक कामदेव है। कहिए, ऐसी * कविता-कामिनी किसका उलछास बढ़ाने वाली नहीं ?




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