प्रतिमानाटकम | Pratimanatkam
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
46 MB
कुल पष्ठ :
281
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)यद्याश्वार द्धि जज ला कः । रे मयूर * रे है
चह्याश्राराश्रकरामिकर: णपूरो मयूरों .
धर ह डक
टानपाजण हे प्रफना सम: कविकल हुक ८ | से कर
नासा हालत: कविकुछगुरु: कालिदासो विलासे: ।
हवा हवा हृदयबसति: पत्चनवाणश्व वाण:
केषां नंघा कथय कविताकामिनी कातुकाय ॥ +
( प्रसन्नराघव )
अस्ठुत अतिसा-नाटक के कर्ता भास को कविवर जयदेव ने उक्त पच्च
में कविता-कामिनी का हास मानकर पशंसित किया है । इससे निश्चित
. होता है कि आचीन काल में भास साधारण जनता में ही नहीं अपितु
संसक्ृत भारती के उच्च कवियों में भी बड़े आऔतिभाजन थे और उनकी
. रचनाएँ रसिक-समाज सें विशेष चुलबुराहट पेदा करने वाली हुआ करती
. थीं। दु्भाग्यवश ऐसे उत्कृष्ट कवि ओर डनकी रचनाओं को हम भूल
1. खो छा. आथ ;
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प्रछोकगत पं० गणपति शाख्री ने अनेक प्राचीन मन्थों का उद्धार किया।
: अपने परिश्रम के फलरूप उन्होंने वे वे अन्य-रत्र सुरुभ किये, जिनका नाम
तक बड़े बड़े विद्वान भूछ गये थे। सच १९१२ में उन्होंने तेरह नाटक
. अकाशित किये। ये नाटक दूसरे नाटकों से कुछ विलक्षण थे । संस्कृत'
नाटकों में कवि अपना परिचय देता है | कालिदास, भवभूति आदि इसी
शैली का अनुसरण करते हैं । इन नव-प्रकाशित नाटकों की सूलछ
हस्तलिखित प्रतियों सें समाप्ति पर अल्येक नाटक का प्थक् पृथक नाम-
निर्देश हुआ रहने से नाम का निश्रय तो हो गया किन्तु इनसे नाटककार
का नामोछेख न होने से ऐतिहासिकों के समक्ष एक विक्ट समस्या खड़ी
हो गईं । पण्डित गणपति शास्त्री ने अन्तरहः बहिरह्ञ परीक्षा कर इन
: तेरहों को भासकृत सिद्ध किया है।
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. # चोर कवि जिसकी अलके हैं, मयूर कवि जिसका कर्णफूल है, भास कवि
: जिसका हास है, कविकुलूयुरु कालिदास जिसके हाव-भाव हैं, हर्प कवि जिसके
. हृदय का हर्ष है, और बाण कवि तो साक्षात् पद्बसायक कामदेव है। कहिए, ऐसी
* कविता-कामिनी किसका उलछास बढ़ाने वाली नहीं ?
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