अलंकार कौमुदी | Alankar kaumudi

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Alankar kaumudi  by परमेश्वरानन्द - Parmeshwaranand

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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प्रथम उल्लास ण् पंछकों से अधर पर, अधर से छाती पर, इत्यादि बूंदी के गिरने का क्रम बताने से 'निश्वलता' व्यखित होती है । यदि शरीर निश्चल न होता, हिठता डुढता रहता तो बूँढों के शिरने का यद्द क्रम कदापि न होता । दिलने डूलने के कारण पलकों से बूँठें सीधी नीचे अधर पर न गिरकर और किसी अड्ड में गिर सकती थीं । इन्हीं विशेषणों से भगवती पार्वती का “अलौकिक सौन्दर्य' भी व्यजित होता है । 'ठहरे' कहने से पठकों की घनता प्रतीत होती है| घने पछकों पर बूँद ठहर सकती है, विरलों पर नहीं । 'कुछ ठहरे' ऐसा कदने से पलकों की स्निग्घता (चिकना- पन) व्यखित होती है । चिकनी चीज पर पानी अधिक देर तक नहीं ठदर सकता । जो वस्तु ऊपर से ठहर २ कर गिरती हे उसका वेग कुछ क्रम हो जाता है । यहा भी आकाश से गिरी हुई बूँढों का वेग पलकों पर ठहरने से कुछ कम हो गया है, परन्तु फिर भी उन्होंने पठकों से गिर कर अधर को पीड़ित किया । इससे अधर का अत्यन्त सोकुमाय वब्यज्ञित होता है । इस प्रकार कई जगदद ठहदरने पर यद्यपि बूँढों का चेग अत्यन्त न्यून हो गया है तथापि व स्तनों पर गिर कर चूर चूर हो ज्ञाती हैं । इससे स्तनों का ' अति काठिन्य' ब्यख़ित होता है । कमर के चल छाती आगे करके वैठने पर भी पेट की सल- चटो में बूँदों के रुकने से उन ( सलवदों ) की 'स्पष्टता'




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