पुरुषत्व | Purushtatva

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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पुरुषत्व ९ हीरा झन्यमनस्का हो उठकर बाहर चली गई । हाय रे आज का कल. शस्खज्वार / नायिका ने सुना चौंकी और गम्भीर हुई। कुछ ही मिनिट में वह एकान्त वाती समाप्त हुई । हीरा दो हज़ार रुपए मासिक पर रामेश्वर की नौकर हो गई श्र बिना उससे पूछे ही उसका सौदा दो गया यह सुनकर हीरा बहुत ही कऋद्ध हुई। उसने घरती में पैर पटक कर कहा--वहद पुरुष १? वह नीरस गँवार मूंगा बहरा पुरुष ? उसकी यह हिम्मत १ मैं इससे बदला दूँगी मैं इसका हर तरह अपमान करूँगी । वह उसी क्रोध में भरी नायिका के पास गई। नायिका ने वेइ्या-घर्म की कठोर सर्यादा का विस्तृत वणन करके उसे शान्त किया । दौरा को उसी दिन मालिक की सेवा में चली जाना पढ़ा दौरा के लिए एक नए बैंगले को आयोजना की गई । उसमें चार दासी दो दास और एक प्रबन्धक रख दिया गया । पोशाक और खाने-पीने की चस्तुओं की गिनती न थी । कमरों में बहुमूल्य वस्तुओं की सजावट का पार नथा। श्यज्ार और ऐइ्वये के नाते अद्धट सम्पदा जो कुछ खरीद सकती है वह सब वहाँ प्रस्तुत था । द्वीरा की रुचि और अभ्यास के अनुकूल आभूषण सोटर और झन्य सामान प्रथम ही से उपस्थित कर दिए गए थे | उस राजमहदल-सदश बंगले में आकर हीरा चकित भीत-विमुड़ बनी खड़ी रही । यह सब कुछ हो सकता है इसकी उसे कल्पना भी न थी परन्तु इस समस्त वैभव के पीछे जो मूर्ति छिपी हुई है वह--वह निर्मम रसहीन मूर्ति १ अरे ६ 3६ ६ हीरा सोचने लगी क्या वद्द मूखे बेतमीज़ श्र नीरस




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