हिन्दी आलोचना के आधार स्तम्भ | Hindi Aalochna Ke Aadhar Istambh

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Hindi Aalochna Ke Aadhar Istambh by रामचन्द्र शुक्ल - Ramchandar Shukla

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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आलोचना का स्वल्प । १७ गुणकितेष की और दृजपात दिये जिना का ही नहों जा सकक्‍ती। * फ्रासीसी समीक्षक देन मे भी वाव्यालोचन के लिए कठि को जातियत मवनोवत्तिया, सामाजिक राजनतिक परिस्थितियों भौर वास-टया को दव्टिपय में रखने पर बल दिया है। दूबर थाटी मे; यही विपय का प्रामाणिव बंध है । मायु की भिन्‍लता भी आलोचता वी पतिक्रियाआ को मिल वर देता है। शुवा बस्वा मे जो इति परम प्रिय प्रतांत हांतो है, यह आव“यकः नहा है हि बद्धावस्था मं भी बह बी ही प्रत्तीत ही । इसत जतिरितत् स्तर वी मिलता अयवा विचारधारा मे अन्तर हात पर भी आलोचवा की प्रतित्रियाए भिन हा सकती हैं। अभावा क बीच मे पलतेवाज आलोचवा, मध्यवितत आलाचव आर सम्पन आलाचक व) प्रतिक्रिया का समान होता मोवेश्यव नहीं हैं। मावसवादी समीसा-पद्धाति वा सन्दम मे यह स्पिति प्राय उभरती रेन्‍नी है। अत समग्गा यह है कि हृति की प्रियता अभ्नियता की क्सोदी क्या है ? इस विपय में वेवत इतना ही बहा जा सवृता है वि. अधिवाधिव' सटुृदय-समाज की कृतिविशष के पति जो अतिक्रिया है कही प्रघाधिक है । मलि पूर्वाप्रहा से मुक्त संवेदनशील “यवितया भसे मधिवाण किसी इति का तप्ण घोषित बर्ते हैं तो वह इृति निम्सल्ह श्रेष्ठ हगी । इसलिए आलोवय की प्रतित्रिया भी उसी के अनुकूल होनी चाहिए। (भा) व्यास्या विश्लेषण बृति से प्रभावित होने ने उपरान्त उसकी प्रियता-अप्रियता व बारणा का विश्तपृण आलाचता का द्विताय अवस्थात है। इसके लिए आलाचर्र का काव्यगास्म, सौल्यधास्त्र मतोविषान तथा समाजशास्थ वा आश्रय लेना चाहिए । आलोचना करत समय आसोचत' वे सम्मुफ चार हच्य होने हैं--- (अ) काव्य का वाह्यारार (मा) उसमर निहित भाव (६) ववि की भन स्थिति जिसमे आलोच्य वाव्य का जम दिया (६) लसक वी समकालीन परिस्वितियाँ शिन्‍्हाने कवि की मन स्थिति वा निर्माण किया। सआलासन था वत्तब्य है वि वह आलाचना मे इन सभी अगों को छचित स्थान द । काब्य दास्त्र थे आधार पर वति व रुप(फाम )वा विवेधन सौल्ल्यशास्‍्त्र वे आधार पर उसके भाषगत सौदय वा उद्घाटन मनाविज्ञान क आरा लेखक की मन स्थिति वा वि्यषण, सेमाजलास्त्रे बे आधार पर युगीन परिस्थितिया कए वणन और कवि पर उनके प्रभाव का विश्लेषण जासोचद का चरम लरय है। वस्तुत साहित्य का मूल त-व तो भाव है विस्लु भाववि प का प्रियता अधियता तल और उसको परिस्यितियां पर निभर बरती है । यदि तक बी परिस्यितियाँ विषम हैं तो उतव काय्य पर उनका प्रभाव मवश्य पढगा। विछु यति आसोचव इस ओर ध्यान नहा दता तो बहू सध्दा के प्रति “याय नहा कर सत्रेश । उदाहरणतमा रीतियासोन दरबारी वातावरण के शारण ही उस युग थे बाव्य में फ्गार भावना वी प्वलता थी. यह सुपप्ठ जरना आवश्यव है । इसने अतिरिक्त कविया है बवासि भूमिशा, पृष्ठ १६ २ देतिए सिद्धांत धोर भष्ययत, पृष्ठ ३०१




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