विकासपुरुष ऋषि हेम | Vikaspurush Rishi Hem
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
5 MB
कुल पष्ठ :
142
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)् प्रतिबोध
का पक्षी टंगा था। उसकी दाईं आंख को वेधना था। एक-एक
कर कई राजकुमार आए, उन्हें लक्ष्य-वेध का मौका नहीं मिला।
क्योकि वे पक्षी की आंख के साथ दूसरी चीजे भी देख रहे थे।
अर्जुन ने निशाना साधा। उसे पक्षी की दाई आख की पुत्तलिका
के अतिरिक्त कुछ भी दिखाई नहीं दिया। द्रोण ने उसको बाण
चलाने की आज्ञा दी। वह सफल हो गया।
स्वामीजी ने देखा कि हेम अब तक अर्जुन नहीं बना है।
वह अपने लक्ष्य के साथ तादात्म्य स्थापित नहीं कर पाया है।
उसे संयम जीवन के अतिरिक्त और भी कुछ दिखाई दे रहा है।
उसकी दृष्टि को एक ही लक्ष्य में समर्पित करने के लिए वे
बोले-हिम! परिस्थिति का दबाव अनुभव कर कभी-कभी कोई
मुमुक्षु व्यक्ति भी विवाह कर लेता है। विवाह के बाद वह एक
दो बच्चों का पिता बन जाता है। उस समय उसे पत्नी का वियोग
भी हो सकता है। पत्नी की उपस्थिति में बच्चों की जिम्मेवारी
वह सभाल लेती है। किन्तु उसका वियोग होने के बाद चाहे-अनचाहे
वह दायित्व पिता पर आ जाता है। मकडी जाला बुनती है, उसमें
फसने के लिए नहीं बुनती। किन्तु अपने बनाए जाले में वह
इस प्रकार फंसती है कि वहां से निकल नहीं पाती। यही बात
उस मुमुक्षु व्यक्ति पर लागू होती है। एक ओर मुक्त होने का
सपना, दूसरी ओर परिवार का तानाबाना। उसमें उलझने के बाद
पपना केवल सपना ही रह जाता है। इसलिए दूरदर्शी व्यक्ति
विवाह के बन्धन में बंधता ही नहीं है।'
स्वामीजी की प्रेरणा ने हेम को भीतर तक आन्दोलित कर
दिया। उसने पिजरे में छटपटाते पछी की पीडा का अनुभव
किया। बन्धन की स्थिति मे होने वाले कष्टप्रद अहसास को छूकर
देखा। उसने दो क्षण के लिए आंखे बन्दकर अपने आपको तोला।
मन मे किसी प्रकार की दुर्बलता नहीं थी। उसने आंखें खोलीं |
पुरु-शिष्य के उस अन्तरंग संवाद के साक्षी मुनि खेतसी ने
बहा- हैमा स्वामीजी की तुम पर असाधारण कृपा है। वे तुम्हारा
हित चाहते है। तुम्हारे जीवन मे ऐसा मौका फिर कब आएगा?
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