कषाय समीक्षण भाग 1 | Kshay Samikshan Bhag 1

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Kshay Samikshan Bhag 1  by आचार्य श्री नानेश - Acharya Shri Nanesh

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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पजीर्जय संगीदार।/ 11 क्रोध की अभिव्यन्क्ठि आधुनिक वैज्ञानिकों ने इस अवस्था में रहने वाले क्रोध-कर्म- स्कंधों की अभिव्यक्ति के चित्र तक ले लिये हैं। इस अवस्था तक पहुँच कर वे क्रोध-कर्म-स्कंध निर्जरित तो होने लगते हैं, किन्तु वे नये कर्म-स्कंधों के निर्माण की सामग्री भी छोड़ जाते हैं, जिससे आत्मा और अधिक नवीन क्रोध-कर्म-स्कंधों का संचय कर लेती है। यह प्रवाह अनादि काल से चल रहा है। सत्तागत क्रोध-स्कंथों का प्रारंभिक अवस्था में अवलोकन होना भी अत्यन्त कठिन होता है, किन्तु अशक्यता जैसी कोई बात नहीं है। हाँ, उदयगत स्कंधों का अवलोकन अपेक्षाकृत सरलतापूर्वक हो सकता है। इसके लिये आवश्यकता होती है, समीक्षण दृष्टि की। जिस दृष्टि के द्वारा सत्तागत और उदयगत क्रोध के कर्म-स्कंधों का सम्यक्‌ अवलोकन करने की ऊर्जा प्राप्त कर ली जाय। कर्म-स्कंध दो रूपों में उदय को प्राप्त होते हैं-एक स्वाभाविक रूप से सम्बन्धित कर्म का अबाधा काल समाप्त होने पर होने वाला कर्मोदय और दूसरा उदीरण विशेष द्वारा अनुदय प्राप्त सम्बन्धित कर्म-स्कंधों को उदय प्राप्त बनाने पर होने वाला उदय। इन दोनों प्रक्रियाओं में बाह्य निमित्त भी उभर कर सामने आते हैं। यद्यपि स्वाभाविक रूप में होने वाले उदय में भी द्रव्य, क्षेत्र काल, भव, भावादि की अपेक्षा रहती है, तथापि उदीरणा में बाह्य निमित्त प्रधान होता है | यहाँ इतनी विशेषता ध्यान में रखनी चाहिये कि बाह्य निमित्तों की अपेक्षा विपाकोदय एवं उदीरणा के लिये ही है। जब किसी कर्म-स्कंध का स्थिति काल पूर्ण होता है तो वह बाह्य निमित्त के. अभाव में भी अनायास उदय में आकर निर्जीण-क्षीण हो जाता है। कभी-कभी निमित्त भले ही कमजोर हो, पर वे क्रोध-स्कंधों को तो अवश्य उत्तेजित कर देते हैं। क्रोध का उदय होने पर, क्रोध का प्रकटीकरण होना एवं उसके निमित्त के यत्किंचित्‌ दोष को बड़े रूप में प्रकट करने का अथवा




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