गृहस्थ में कैसे रहें | Grahstha Men Kease Rahen
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
5 MB
कुल पष्ठ :
130
श्रेणी :
हमें इस पुस्तक की श्रेणी ज्ञात नहीं है |आप कमेन्ट में श्रेणी सुझा सकते हैं |
यदि इस पुस्तक की जानकारी में कोई त्रुटि है या फिर आपको इस पुस्तक से सम्बंधित कोई भी सुझाव अथवा शिकायत है तो उसे यहाँ दर्ज कर सकते हैं
लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
No Information available about स्वामी रामसुखदास - Swami Ramsukhdas
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)व्यवहार २३
आश्रममें जानेवालोंके लिये ये खास नियम हैं। अतः गृहस्थको
अतिथिका यथायोग्य आदर-सत्कार करना चाहिये।
अतिथि-सेवामें आसन देना, भोजन कराना, जल पिलाना
आदि बहुत-सी बातें हैं, पर मुख्य बात अन्न देना ही है। जब
रसोई बन जाय, तब पहले विधिसहित बलिवैश्वदेव करे।|
बलिवैश्ददेव करनेका अर्थ है--विश्वमात्रको भोजन अर्पित
करना | फिर भगवान्को भोग लगाये | फिर कोई अतिथि, भिक्षुक
आ जाय तो उसको भोजन कराये। भिक्षुक छः प्रकारके कहे
गये हैं--
ब्रह्मतारी यतिश्वेव विद्यार्थी. गुरुपोषक: ।
अध्वग: क्षीणवृत्तिश्ष षडेते भिक्षुका: स्मृता:॥
ब्ह्मचारी, साधु-संन्यासी, विद्याध्ययन करनेवाला, गुरुकी
सेवा करनेवाला, मार्गमें चलनेवाला और क्षीणवृत्तिवाला (जिसके
घरमें आग लगी हो; चोर-डाकू सब कुछ ले गये हों, कोई
जीविका न'रही हो आदि) --ये छः भिक्षुर्क कहे जाते हैं'; अतः
इन छहोंको अन्न देना चाहिये। ह
यदि बलिवैश्वदेव करनेसे पहले ही अतिथि, भिक्षुक आ
जाय तो ? समय हो तो बलिवैश्वदेव कर ले, नहीं तो पहले ही
भिक्षुकको अन्न दे देना चाहिये। ब्रह्मचारी और संन्यासी तो बनी
हुई रसोईके मालिक हैं। इनको अन्न न देकर पहले भोजन कर
ले तो पाप लगता है, जिसकी शुद्धि चान्द्रायणत्रत * करनेसे होती
+ चान्द्रायणत्रतकी विधि इस प्रकार है---अमावस्याके बाद प्रतिपदाको एक आस,
द्वितीयाको दो आस---इस क्रमसे एक-एक ग्रास बढ़ाते हुए पूर्णिमाको पन्द्रह आस अन्न
अहण करे। फिर पूर्णिमाके बाद प्रतिपदासे एक-एक आस कम करे अर्थात् प्रतिपदाको
चौदह, द्वितीयाको तेरह आदि | तात्पर्य है कि चन्द्रमाकी कला बढ़ते समय आस बढ़ाना '
और कलां घटते समय. आस घटाना 'चान्द्रायणत्रत' है। गासके सिवाय और कुछ भी
नहीं लेना चाहिये।
User Reviews
No Reviews | Add Yours...