गृहस्थ में कैसे रहें | Grahstha Men Kease Rahen

55/10 Ratings. 1 Review(s) अपना Review जोड़ें |
Grahstha Men Kease Rahen by स्वामी रामसुखदास - Swami Ramsukhdas

लेखक के बारे में अधिक जानकारी :

No Information available about स्वामी रामसुखदास - Swami Ramsukhdas

Add Infomation AboutSwami Ramsukhdas

पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

(Click to expand)
व्यवहार २३ आश्रममें जानेवालोंके लिये ये खास नियम हैं। अतः गृहस्थको अतिथिका यथायोग्य आदर-सत्कार करना चाहिये। अतिथि-सेवामें आसन देना, भोजन कराना, जल पिलाना आदि बहुत-सी बातें हैं, पर मुख्य बात अन्न देना ही है। जब रसोई बन जाय, तब पहले विधिसहित बलिवैश्वदेव करे।| बलिवैश्ददेव करनेका अर्थ है--विश्वमात्रको भोजन अर्पित करना | फिर भगवान्‌को भोग लगाये | फिर कोई अतिथि, भिक्षुक आ जाय तो उसको भोजन कराये। भिक्षुक छः प्रकारके कहे गये हैं-- ब्रह्मतारी यतिश्वेव विद्यार्थी. गुरुपोषक: । अध्वग: क्षीणवृत्तिश्ष षडेते भिक्षुका: स्मृता:॥ ब्ह्मचारी, साधु-संन्यासी, विद्याध्ययन करनेवाला, गुरुकी सेवा करनेवाला, मार्गमें चलनेवाला और क्षीणवृत्तिवाला (जिसके घरमें आग लगी हो; चोर-डाकू सब कुछ ले गये हों, कोई जीविका न'रही हो आदि) --ये छः भिक्षुर्क कहे जाते हैं'; अतः इन छहोंको अन्न देना चाहिये। ह यदि बलिवैश्वदेव करनेसे पहले ही अतिथि, भिक्षुक आ जाय तो ? समय हो तो बलिवैश्वदेव कर ले, नहीं तो पहले ही भिक्षुकको अन्न दे देना चाहिये। ब्रह्मचारी और संन्यासी तो बनी हुई रसोईके मालिक हैं। इनको अन्न न देकर पहले भोजन कर ले तो पाप लगता है, जिसकी शुद्धि चान्द्रायणत्रत * करनेसे होती + चान्द्रायणत्रतकी विधि इस प्रकार है---अमावस्याके बाद प्रतिपदाको एक आस, द्वितीयाको दो आस---इस क्रमसे एक-एक ग्रास बढ़ाते हुए पूर्णिमाको पन्द्रह आस अन्न अहण करे। फिर पूर्णिमाके बाद प्रतिपदासे एक-एक आस कम करे अर्थात्‌ प्रतिपदाको चौदह, द्वितीयाको तेरह आदि | तात्पर्य है कि चन्द्रमाकी कला बढ़ते समय आस बढ़ाना ' और कलां घटते समय. आस घटाना 'चान्द्रायणत्रत' है। गासके सिवाय और कुछ भी नहीं लेना चाहिये।




User Reviews

No Reviews | Add Yours...

Only Logged in Users Can Post Reviews, Login Now