प्रकृति भी मुखर हो उठी | Prakrati Bhi Mukhar Ho Uthi
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
3 MB
कुल पष्ठ :
142
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)( ६ )
कलम औओऔर कागज
अपने ऊपर आती हुई करूम को देखते ही कागज ने
कहा--जब भी तुम आती हो, मुर्के सिर से लेकर पेर तक
काले रंग से रंग देती हो । मेरी सारी शुक्कता और ह्व-
च्छता को विनष्ट कर देती हो ।
कलम ने कहा-देखो, मै तुम्हारी शालीनता-स्वच्छता
भंग नही कर रही हूँ | बल्कि तुम्हारी उपादेयता मे निखार
ला रही हूँ । जव तुम्हे मै अक्षरों की रगीवतता से भर देती
हूँ तो छोग तुम्हे सुरक्षित रखते है। समभदार व्यक्ति की
हृष्टि में कोरे कागज का कोई विशेष महत्व नहीं होता ।
यदि इसमे कुछ न कुछ लिखा होता है तो सुज्ञ व्यक्ति श्रव-
इश्य उसे उठाता है और पढ़ने की कोशिश करता है तो भाई
तुम्हारे ऊपर जितना अधिक लेखन होगा । तुम्हारी उत्तनी
ही अधिक उपादेयता बढ़ती जाएगी ।
करूम की सत्य वात को, कागज ने सह स्वीकार
कर ली ।
ऊपरी कालेपन या गोरेपन का इतना कोई महत्व
नहीं है । महत्व तो उसका है कि उसके अच्तरंग में उप-
योगी वस्तु क्या है ? |]
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