दर्द दिया है | Dard Diya Hai

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Dard Diya Hai by नीरज - Niraj

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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[शा ओर जाते हैं तब गद्य रचना करते हैं और जब अस्वाभाविकतासे स्वाभाविकता की भोर आते है तब कवित्ता लिखते है। स्वाभाविकता ही गति है, जो व्यष्टि, समष्टि मौर सृष्टि सबकी स्थिति का एकमात्र कारण है। कविता भी एक सृष्टि है, इसलिए सृष्टि के समान गति (लय) उसकी भी आधा रशिला है । वाक्य में गति प्रिया के सहज एव उचित प्रयोग से ही आती है । सस्कृत साहित्य उत्तराधिकार मे पाने तथा स्वभाव से आध्यात्मिक चिन्तन मे लोन होने के कारण हिन्दी मे “क्रियाः के महततव को कभी ठोक तरह से नही समा (ब्रनभापा ओौर अवधि के कचियो ने यह्‌ गलती नही को) । या तो उसने उसका बहिष्कार किया या उसका गलत प्रयोग किया । आधुनिक हिन्दी कविता मे किया को स्थानच्युत भर पदच्युत करने के अनेक उदाहरण दिए जा सकते है । आरम्भ मे मैंने भी यही भूल की थी पर एक दिन अचानक ही एक चार वप के बच्चे ने मुझे मेरी भूल सुकाई और तब से मैं किया के प्रयोग के विपय मे अधिक सजग रहने लगा । श्रेष्ठ कविता का एक गुण स्मरणोयता भी है और वह भो बहुत कुछ फ़िया के उचित या अनुचित प्रयोग पर ही निभर है। जिस वाक्य में 'किया' स्थान श्रष्ट होगी वहू वाक्य प्रयत्न करने पर भी स्मृति मे अधिक देर तक नही ठहर सकता भौर जिस वाक्य में 'फ्रिया' अपने निश्चित स्थान पर होगी वह वाक्य विना प्रयास हमारे स्मृ्ति-पट पर अकित हो जायेगा । नीचे के दो उदाहरणो से यह स्पष्ट हो जायेगा-- आज जी भर देख सो दुम चाद को, क्या पता यह रात फिर माए न आए । 9 ©. 9




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