नज़ीर अकबराबादी | Nazeer Akbarabadi

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Nazeer Akbarabadi by सरस्वती सरन कैफ़ - Saraswati Saran Kaif

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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नज्जीर श्भ्‌ के करु-करशा मे ईश्वर के दर्शन करते है -+- हर श्रान भे हर बात में हर ढंग में पहचान आशिक है तो दिलबर को हर-इक रग में पहचान दूसरी ओर वे निघनता की सलिन्दा और धन की प्रशसा करने लगते है और दुनियादारी की बातें कहते-कहते यहा तक कह डालते हैं --- सच है कहा किसी से कि 'भूखे भजन न हो अल्लाह की भी याद दिलाती हैं रोटिया वेराग्य और ईश-प्रेम की बातो के साथ ही “नज्ञीर' मेलो- ठेलो, तराकी, चिडियो, जानवरों की लडाई और लैला-मजनू की कथा का भी वणन करने लगते हैं और खूब वन करते हैं । 'रीछ का बच्चा का एक बंद देखिए +-- इक तरफ को थी सैकछो लडको की पुकारे इक तरफ को थी पीरो-जवानो की कतारें कुछ हाथियो की कीक और ऊटो की डकारं गुल, शीर, मजे, नीड, ठठ, अम्बोह, बहारें जब हमने किया लाके खड़ा रोछ का बच्चा 'नज्गीर' का यह परस्पर विरोध आज के सिद्धात्वादी- बुद्धिवादी मस्तिष्क के लिए उल्भन और खीम का कारण बन जाता है। सम्भवत इस्तोलिए श्राधुनिक आलोचक उनकी प्रशसा करते-करते भिफ्रक जाते हैं। लेकिन आखिर क्या विया जाय ? जीवन वो तक भौर सिद्धातों के साचे में फिट करके ती नही! रखा जा सकता । “नज्थीर' का कसूर भ्रगर कुछ है तो सिर्फ इतना दि उन्होंने जोवन की विशालता को भी देखा था




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