झाँसी की रानी | Jhansi Ki Rani
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
8.89 MB
कुल पष्ठ :
300
श्रेणी :
हमें इस पुस्तक की श्रेणी ज्ञात नहीं है |आप कमेन्ट में श्रेणी सुझा सकते हैं |
यदि इस पुस्तक की जानकारी में कोई त्रुटि है या फिर आपको इस पुस्तक से सम्बंधित कोई भी सुझाव अथवा शिकायत है तो उसे यहाँ दर्ज कर सकते हैं
लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
No Information available about श्यामनारायण प्रसाद - Shyam Narayan Prasad
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)( १६ 3 गोद में प्रज्ञा का कपाट खोले हुये छोटी-सी कुटिया विह्वेश रही थी । सम्मुख काले मृगछाले के ऊपर प्राचीन ऋषियों के प्रतीक बाबा गंगादास ध्यान-मरत थे । बगल में जल से भरा हुआ कमण्डलु लहरा रहा था । दूसरे पाइवबें में पलास-दण्ड रक्खा हुभा था । उस विशाल ललाट से श्रपूवे तेज सूर्य की किरणों को भी हृतप्रभ कर रहा था । कुटिया की बगल में कदम्ब के वृक्ष से घोड़े बाँध दिये गये जितकी टापों की ध्वनि और हिनह्िनाहट से तपस्वी की समाधि खुली रक्तिम सेब ऊपर उठे । सामने साकार भवानी को देख एक झनिवेचनीय झानन्द हृदय में लहराने लगा । तु श्रपनी प्राण प्यारी सखी के साथ शीतल जल से प्यास बुझा कर तपस्वी के द्वारा दिये हुपे श्रासन पर बंठ गई । बाबा जी भी श्रातिथ्य सत्कार से निवृत हो श्रासन पर विराजमान हो गये । तूने प्रदन क्रिया--- स्वराज्य केसे मिलेगा भगवन् ? जसे मिलता झाया है । नहीं समझ सकी प्रभो तुने कौतूहलपुर्ण नेत्र से पुन. श्राज्ञ साँगी 1 त्याग तपस्या श्ौर बलिदान से । एक क्षीण मुसकराहूट के साथ तूने पुन प्रदइन किया--- कया हमलोग श्रपनी भाँखों देख सकेगी ? प्रदन सुनते ही तपस्वी को मुद्दा श्र गम्भीर हो गई पुन सन्नद्ध होकर कहने लगे--भवानी यह मोह कैसा ? कभी इमारत की नीव की इंट उसके स्यक्रम्द रूप को देखती है । इसी भाँति तेरें लिये भी यह भ्रसम्भव है कि स्वातन्य भवन के साकार रूप को देख सको । तुझे तो स्वातत््य भवन की नीव की पहली इंट बननी है जिसके ऊपर सत्य संकल्प त्याग धौर बलिदान से श्राने वाले वीर भव्य भवन का निर्माण करेंगे भौर उसकी छवछाया में देशोत्थान के गीत गावेंगे । इस उप- देदा के सुनते ही रणचण्डी तेरी प्रज्ञा का कपाट खुल गया जिसमें श्रात्म बलिदान की पावन प्रतिमा विहवूस उठी भौर उधर प्राची के धाँचल पर गोधूलि भी मुसकरों उठी । साध्टाग दण्डवर्त् के बाद मुख के निकला-- मे पुन दर्द न करूंगी अ्रभो अतना कहकर सखी मुन्दर के साथ घोड़े पर सवार हो किले को लौट भाई । प्राकाद में विपत्ति के बादल मंडरा रहे थे। विभीषिका भपनी काल सर्पिणी सी जोम लपलपा रही थी लेकिन ग्वालियर वालों को इसकी परवाह न थी । रावसाहब पेशवा के ऐश-प्राराम की नाटकदाला भ्रम भी दिवाली मना रही थी । भाँग पर भाँग छन रही थी । उधर जनरल रोज की सेना की संयारी प्रबल वेग से हो रही थी । काल के समान विकराल
User Reviews
No Reviews | Add Yours...