स्कन्द पुराण खंड 1 | Iskand Puran Khand 1
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
14 MB
कुल पष्ठ :
479
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
जन्म:-
20 सितंबर 1911, आँवल खेड़ा , आगरा, संयुक्त प्रांत, ब्रिटिश भारत (वर्तमान उत्तर प्रदेश, भारत)
मृत्यु :-
2 जून 1990 (आयु 78 वर्ष) , हरिद्वार, भारत
अन्य नाम :-
श्री राम मत, गुरुदेव, वेदमूर्ति, आचार्य, युग ऋषि, तपोनिष्ठ, गुरुजी
आचार्य श्रीराम शर्मा जी को अखिल विश्व गायत्री परिवार (AWGP) के संस्थापक और संरक्षक के रूप में जाना जाता है |
गृहनगर :- आंवल खेड़ा , आगरा, उत्तर प्रदेश, भारत
पत्नी :- भगवती देवी शर्मा
श्रीराम शर्मा (20 सितंबर 1911– 2 जून 1990) एक समाज सुधारक, एक दार्शनिक, और "ऑल वर्ल्ड गायत्री परिवार" के संस्थापक थे, जिसका मुख्यालय शांतिकुंज, हरिद्वार, भारत में है। उन्हें गायत्री प
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)( रै२ 3३
गगन | सम्तार के हृदय भौर झअद्ृदय फदार्था मे मे में किसको
यहरा घोर किप्तकों व्याय स्छो 2 जात से बिसमी सछ्थियाँ हैं, पे सब
मेरे सिए पाता! पाती के रामान हैं, शोर दितने भो पुरुष हूँ. दंत से
हो में प्रापके ([भमिवजोी के] हप में देखता है? यह विवेक मैन झ्ापके
ही प्रसाद मे प्रात किया है, इसलिए प्राप सुसें नत्क में डूबने से
छबचाईमे | भयकूर संफार-सावर से फिर के गिर जो पाए इसो को
धड्ाा वर | जंधते दीपक द्ाप मे लेकर किसी चत्तु को खोजने वाला संस
परतु को प्राकार भग्य साधनों को तस्फ व्याव मही देता उसी अ्रकाक
थोगो को घथधाएं ज्ञान प्राप्त हो जने पफर वह सोब्रारिद साया मोह को
हथाग देते! दै । सर्व्यापौीं बइतह्धा को चान बार जिसके सब चन्धतात्मक्त
शर्म जिलुत्त हो जाते है उसी को पिड़ान पुरुष गोणो चहते हैं। झानवो
वे लिए ज्ञान घत्यनत्र दुर्लभ है । ज्ञानोइन शात हुए कान को किसों
परवाह रीदेला सह चाहते | मैं संव्ाब-्बन्दन सर छूटने की प्रच्छा नव
हैं इसलिए मुस्स ऐसी क्योई रात नही कबहुतो चाहिए डिपस इस छगनों
के टुढ होने को प्राधक्य हो 17
इस पंवार 4.4 खसंद। कुमार ही बने ज्हें प्रौर डची नाम छे
प्रसिद्ध टृ ) उस्होंने साधनान्बाल गे भाने वालो भरिमा प्रादि गिद्धियों
श्र दूत मोगा दिया धौर हठनस निमनलर ममहेध्टि ब्प दो स्व )कार रिया |
टर्सालिये थे अदा वंदत दादुप्रों पर हो विजपो नदी बढ़े, पर वाम क्राप,
माह धादि पर्डरिपृश्तों का भी ढतके कार दामी कोई प्रभाव नहों पड़
पता |
सत्य को प्रतिट्रा---
“इाह्वत' का उप्रा्धान बरी दँव पुराणों तथा प्रन्यों में भी
पाटित है ॥ पर स्कन्द पूराण में उसे जिय रूप में दिया गया दे उप्तसे
पह भरत्प प्र प्रताप को विज का हृष्दारत बन गाया है ॥ उसप्े डिछ
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