निशीथ सूत्र | Nishitha Sutra

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Nishitha Sutra by ब्रजलाल जी महाराज - Brajalal Ji Maharaj

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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करने याला नही अपितु प्रायश्वित्त को प्रतिपादन करने वाला है। इस बाथन में श्वेताम्बर और दिगम्बर दोनों आचार्य एकमत हैं ।* . चूथि में निशीय को प्रतिपेधयूत्र था प्रायश्चित्तमूत्न या प्रतिपादक बताया है।* निशीयभाष्य में लिया है हि भ्रायारचूला में उपदिध्द किया का भतिक्रमण परमे पर जो श्रायश्चित्त आत्ता है उसका निशीय में वर्णन है 13 निशीपसूत्र में अपवादों का बाहुलय है । इगलिए सभा आदि से इसका वाचन नहीं करना चाहिए। अनधिकारी के सन्मुष् उसका प्रकाशन ने हो। भ्रतः रात्रि या एकान्त में पठनीय होने से निशीय का अर्थ संगत होता है। निसि- हिया का जो निर्षेधपरक अर्थ है उसकी संगति भी इस प्रकार हो सकती है दिः जो पग्रनधिकारी हैं उनको पढ़ाना निषेध है भौर जन से आउुल स्थान में भी पढ़ना निषिद्ध है। यह वेवल स्वाध्यायभूमि में ही पठनौय है । हरिवंशपुराण में “निषयक! शब्द प्राया है। सम्भव है कि यह सूभ् विशेष प्रकार की निषद्या में पढ़ाया जाता होगा । इसलिए इसप्ा नाम निषद्यक रखा गया हो । आलोचना करते समय आलोचक श्राचार्य के लिए निषया की व्यवस्पा करता था ।४ सम्भव है प्रस्तुत भ्रष्ययल के समय में भी निषद्या की व्यवस्था की जाती होगी । इसलिए निशोधभाष्य मे इसका उल्लेय मिलता है ।* निशीष के आचार, प्रग्न, प्रकल्प, चूलिया ये पर्याय हैं। प्रायश्चित्तमूत्न का सम्बन्ध चरणकरणानुयोग के गाष है। भतः इसझा नाम आचार है। आचारांगमूत्र के पाँच अग्न हैं। चार प्राचारघूलाएँ और निशीय ये पाँच अग्र हैं इसलिए निशीध का नाम अग्र है। निशीय का नौवें पूर्व श्राचारप्राभृत परे रचना की गई है इसलिए इसका नाम प्रकत्प है । प्रकल्पन का द्वितीय अर्थ छेदन बारते वाजा भी है। क्ामस साहित्य में निधीय का 'शापारपकरप्पँ यह थाम मिलता है। अग्र प्रौर चूला समान अर्थ वाले शब्द हैं 1 संक्षेप में सार यह है कि निशीष का अर्य रहस्यमय या गोपनीय है। जैसे रहस्यमय विद्या, मन्त्र, तस्त्र, योग भादि अनधिकारी या अपरिपकव बुद्धि वाले व्यक्तियों को नही बताते । उनसे छिप्रावर गोप्य रखा जाता है । बसे ही निशीयसूत्र भी गोप्य है। वह भी हर किसी के समक्ष उद्घादित नहीं किया जा सकता । निश्ञोय का स्थान चार भनुयोगों मे घरणकरणानुयोग का गोरवपूर्ण स्थान है। चरणानुयोग वा भ्र्थ है आचार सम्बन्धी नियमावली, भर्यादा प्रभृति की व्याख्या | सभी छेदसूत्रों के विषय का समावेश चरणकरणानुयीग में किया जा सकता १. (वा) श्रायारपकप्पस्स उ इमाइं गोण्णाईं जरामधिज्जाइईं । आयारभाइयाई पायच्छित्तेणउद्दीगारी ॥ -+निशीयभाष्य गाया २ (ख) णिसिहियं बहुविहपायच्छित्तविह्वाणवण्णण कुणइ । +परदुखण्डागम, भा. १ पृ. ९८ ९. तप प्रतिसेधः चतुयंचूडात्मके प्राचारे यत्‌ प्रतिपिद्ध त॑ सेवंत्तस पच्छितं भवति सि काउं 1 _-निशीधचूणि, भा. १, पृ. ३ है. आ्रायारे चउसु य, चूलियासु उवएसवितहकारिस्स | पाच्छित मिहज्कयणे भणियं भ्रण्णेसु य पदेसु ॥ --निशीयभाष्य ७१ ४. शायारे चउसु य, चूलियासु उवएसवितहकारिस्स । पच्छित्त पिहज्कयणे भणियं श्रण्णेसु य पदेसु ॥ “-निशीयभाष्य ६३८९ *. सुत्तेत्यतदुभयाणं गहणं॑ वहुमाणविणयमच्छेरं । उबकुड-णिसेज्ज-अंजलि-गहितागहियाम्सि य पणामो ॥ “निशीयभाष्य सूत्र ६६७३ र७छ




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