निवन्ध माला दर्श | Nibandha Mala Darsh

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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जिवन्धमालादश !* रू न्यतः उस भाषा के लोग समझते ' है' कि कवि, अर्थात्‌ क्पना स॒ष्ठि का वनानेवाला यही उसका मूल अर्य है। पर हम नहीं,स- मकते [कि ऐसा गहन अये उन लोगों के मन्त में प्रथमतः -आंया। हों | हमारे कवि शब्द की नाई 'करनेवाला) अथात्‌ पद्च जोड़ने- 'वाला' इतनाही थे उस समय के लिये हप अधिक युक्ति संगत! मानते हैं ।,अस्तु; यहालों फेवल शब्द की व्याख्या का विवरण हुआ । अब आगे कवि के आवश्यक गुणों के विप॑य में विचार प्रकाशित किया जाता है). , '* (७ ) कवि का प्रधान गुण सहृदयता हैं। हृद्॒य की मद्गार; चीर, करुणादि जो भिन्न २हत्तिया है वे उसे अत्यन्त सृष्षम एव स्प्टरूप से अनुभूत होनी चाहिये । उक्त भिन्न २ दृत्तियों का विषय इन्द्रियगोचर होतेही कवि का मन शुव्ध होजाता है, ओर उस धुग्धता के आवेग में उस के मुख से जो बातें दिनिःछत होती है बद्दी यथा कविता है # | इसका परमोत्तम उठाहरण ः पूर्वो ल्लिखित हमार आइदकाब को ऋक्राचवंध एवपय का कावेता हद | हमार भापा, काव्य के भण्डार में ऐसी सवोह्व सुन्दर कविता विशेषकर गोसाई तुलसीदासंजी कीही पाई जाती है ।। इनका मन अत्यन्त ज़िमेल एव प्रेमी वेसेही स्वभाय नितान्त सरल अथवा गम्भीर होने के कारण जिस पसइ की चौपाई देखिये मानों उससे वह रस ठपका पडता है; यही कारण है कि आज तीन चार सौ बर्ष से उनकी चौपाई रामायण हम,लोगों को ऐसी भाशप्रिय होरहो है। और जबलों उसकी आधारस्वरूप हिन्दीभाषा संसार में पचलित रहगी तबल्लों / % बर्स्वथे शासक अग्रेज़ कवि ने काव्य का लक्षण यों कियादे “120९४ 7४ ६19 8[0ए:1९०७३ ०ए९०१0७ ०0६ एफ (दपट० 7 1 दिखिये भाप कमा फह्ले ऐँ-- ः « सरल कनित कौराति विमल, सोड़ भादरदि सुशाग । 5




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