पद्य रत्न माला | Padhey Ratan Mala
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
3 MB
कुल पष्ठ :
204
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)सूरदास १७
अमर-गीत
सधुप, तुम कट्ों कद्दाँ व आये हो ।
जानति हों श्रतुमान आपने, तुम यदुनाथ पठाये हो ॥
चैसेद्टि चरन प्रसन ततु वैसे, ये भूषण सजि ताये हो ।
ले सर्प मैंग स्याम सिधारे, अ्रव का पर पहिराये दो ॥ ५५
अद्दो मधुप, एके मन सो, सु तो वहाँ ले छाये हो।
अप यह कौन सयान बहुरि ब्रज, जा कारन उठि आये हो |
सघधुयन की मानिनी मनोहर, तहीं जाहु जहँ भाये हो । ]
*सूर” जद्दाँ लौ स्याम गात हो, भानि भले करि पाये हो ॥
मधुकर, हमही क्यों समुकावत |
यारयार ज्ञान गीता ज्रज, अबलनि आगे गावत॥
नैंद-नदन त्रित्त पट कथा ए, कत कहि रूचि उपजावत |
ख्क्र चढन थों अग सुधारत, फहि कैसे छुस पावत ॥
देग्पि तिचारत ही जिय अपन, नागर हो जु कहावत |
पतन सुमनन पर फिरी निरसि करि, काहे कमल बँधावत ||
चरन कमल कर नयन कमल कर, नयन कमलवर भाषत।
'सूरदास” मनु अलि अछुरागी, केद्दि विधि दो वहरावत्त ॥
पुनहु गापी हरि को सन्देस ।
ह_रि समाधि अन्तर्गति ध्यावहु, यह उनको उपदेस ॥
वै अग्रिगति अविनासी प्ररन, सभ घट रहे समाइ।
मिर्सुल छात्त बिलु सुक्ति नहीं है; वेद पुराननि याइ ॥
रू
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