पद्य रत्न माला | Padhey Ratan Mala

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Padhey Ratan Mala by महामहोपाध्याय राय बहादुर पंडित गौरीशंकर हीराचन्द्र ओझा - Mahamahopadhyaya Rai Bahadur Pandit Gaurishankar Hirachand Ojha

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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सूरदास १७ अमर-गीत सधुप, तुम कट्ों कद्दाँ व आये हो । जानति हों श्रतुमान आपने, तुम यदुनाथ पठाये हो ॥ चैसेद्टि चरन प्रसन ततु वैसे, ये भूषण सजि ताये हो । ले सर्प मैंग स्याम सिधारे, अ्रव का पर पहिराये दो ॥ ५५ अद्दो मधुप, एके मन सो, सु तो वहाँ ले छाये हो। अप यह कौन सयान बहुरि ब्रज, जा कारन उठि आये हो | सघधुयन की मानिनी मनोहर, तहीं जाहु जहँ भाये हो । ] *सूर” जद्दाँ लौ स्याम गात हो, भानि भले करि पाये हो ॥ मधुकर, हमही क्‍यों समुकावत | यारयार ज्ञान गीता ज्रज, अबलनि आगे गावत॥ नैंद-नदन त्रित्त पट कथा ए, कत कहि रूचि उपजावत | ख्क्र चढन थों अग सुधारत, फहि कैसे छुस पावत ॥ देग्पि तिचारत ही जिय अपन, नागर हो जु कहावत | पतन सुमनन पर फिरी निरसि करि, काहे कमल बँधावत || चरन कमल कर नयन कमल कर, नयन कमलवर भाषत। 'सूरदास” मनु अलि अछुरागी, केद्दि विधि दो वहरावत्त ॥ पुनहु गापी हरि को सन्देस । ह_रि समाधि अन्तर्गति ध्यावहु, यह उनको उपदेस ॥ वै अग्रिगति अविनासी प्ररन, सभ घट रहे समाइ। मिर्सुल छात्त बिलु सुक्ति नहीं है; वेद पुराननि याइ ॥ रू




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