त्रिलोकसार | Triloksar

55/10 Ratings. 1 Review(s) अपना Review जोड़ें |
Book Image : त्रिलोकसार  - Triloksar

लेखक के बारे में अधिक जानकारी :

No Information available about नेमिचंद्र सिध्दान्त चक्रवर्ती -Nemichandra Sidhdant Chakravarti

Add Infomation AboutNemichandra Sidhdant Chakravarti

पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

(Click to expand)
(९) धघटावनेका निवोह नाहीं तातें पांच पाया ताकरि च्यारिकों गुणें बीस घटाएं तहां पांच रहे । बहुरि पाया अंक पांचा तिस दूबाके आगे लिझ्या | बहुरि इस पांचाका वर्ग पच्चीस ताकों तिस अवशेष झहित आगिडा सम पचावन तामें घटाएं तहां तीस रहे । बहुरि जुदा छिख्या पर्चासतें दूणा फचास ताका भाग तिस अवशेष सहित आगिछा सम तीनसे तीन ताकों दीए छह पाया तिस करि पचासकों गुणें तीनिसे भए सो घटाएं तहां तीन अवशेष रह्या | बहुरि पाया अंक छक्का सो जुदा तिस पांचके आगें लिख्या बहुरि याका वर्ग छत्तीसकों तिस अवशेष सहित विषम छत्तीस विषें घटाएं राशि निःशेष होइ । ऐसे पूर्बाक्त प्रमाणका वर्गमूलके जुदें अंक लिखें तिन कारें दोयसे छप्पन हो है। बहुरि जिस राशिका वर्गमूल कीएं वह राशि निःशेष होइ तहां अवशेष रहें ताका अंक करे (र्वोक्त विधान करिए । जेसे सत्रहका वर्गमूठ करना तहां ऐसा लिखि ३७ इहां अंत विषमके अभावतें दोऊ अंकनि वि च्यारिका वर्ग सोलह घटाएं तहां एक रह्या अर च्यारि जुदा लिख्या । बहुरि तिस एककों जुदा लिख्या अंकर्ते दूणा प्रमाण आठका भाग दीएं अष्टमांश पाब । परंतु आगे इस पायाकी वर्ग छोडनेका निब्रीह नहीं तातें किंचित्‌ ऊन अष्टमांश अधिक च्यारि तिसका व्गेमूठ जाननां । सामन्यपने किंचित्‌ ऊंनकें न गिनिए तो अष्टमांस अधिक च्यारि हो हैं। तातें सत्रहका वर्गमूठछ किंचित्‌ ऊन जाननां | बहुरि इतना जाननां । जिस राशिका जो वर्गमूल होइ तिस राशिका सो तौ प्रथम वर्गमूल कहिए । अर प्रथम वगेमूलका जो व्गेमूल होइ ताकों तिसही राशिका द्वितीय वर्गमूल कहिए ऐसे द्वितीयादि वर्गमूलनिर्कों तृतीयादि वर्गेमूल कहिए हैं । जैसे पेंसठि हजार पांचसे छत्तीसक़ा प्रथममूल दोयसे छप्पण द्वितीयमूल सोला तुृतीयमूछ च्यारि चतुर्थभूल दोय जाननां । ऐसें बर्गमूल क्या । बहुरि जो राशि जिसका घन कीएं होइ तिस राशिका सो घनमूल जाननां । प्रद्मति बिपें याकी प्रगटता धोरी है जैसे चोंसठि च्यारिका घन कीएं होइ तातें चोंसठिका घनमूल च्यारि है | अब याका. विधान कहिए हैं। जिस राशिका घनमूछ करना होइ तिसका प्रथम अंक घनस्थान दूजा तीजा अधनस्थान ऐसें एक घनस्थान दोय अधनस्थान तिनकी सहनानी ऊभी आडी छांक अंक निके ऊपरि करनी । जैसे एक कोडि सडसठि छाख सतहर्तारे हजार दोयरस सोलाका घनदुछ काढना होइ तहां पहलें ऐसे सहनानी करती १६७७७२१६ बेंहरि अंतका घन अंक ब्रिषे वा अंतका घन अंक न होइ तो अंत अर उपांत दोय अंकनि विषें उपॉत भी घन अंक न होइ तो अंतादिक तीन अंकनि विषें जाका घन कीए उन अंकरूप प्रमाणतैं बधता प्रमाण न होय तिस अंककों घनका जो प्रमाण सो घटाईए अवशेष तहां लिखिए । अर तिस अंककों जुदा लिखिए | बहुरि तिस अवशेष सहित अगछा अघन अंकरूप प्रमाणकों जुदा स्थाप्या अंकका घगे करि तिससें तिगुणे प्रमाणका भाग देनां जो रूब्ध अंक होइ ताकों तिस जुदा स्थाप्या अंकके आगें लिखनां अर इस अंक गुण्य हुवा भागहारकों भाज्य बिप्रें घटाइ अवशेष तहां लिखना । बहुरि इस अवशेष सहित अग॒छा अघन अंकरूप प्रमाण विर्षे तिस रूब्ब अंकका: बगे करि तार्कों पवें पंक्ति विर्षे छिखे अंकनि करि गुणि ताकों तिगुणा कीएं जो प्रमाण आबै द्‌




User Reviews

No Reviews | Add Yours...

Only Logged in Users Can Post Reviews, Login Now