छाया | Chaya
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
5 MB
कुल पष्ठ :
206
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)छाया | 13
ऐसी निर्धन महिलाएँ भी मेले में नहीं जा रही थीं श्रौर
नवती भानुमती पुत्रहीन होने के कारण मेले की वहार देखकर
ने 'रही थी । क्योंकि रूठते-सचलते और किलकारियां भरते बालक
ते श्राज मेले की वहार थे और पुत्रवती माताए इस. बहार की
शाश्रय थीं। रोती रही भानुमती । पर कब तक रोती ? उसके
यू तो सूख गये, पर गोरे कपोलों पर अपने चिक्त छोड़ गये और
प्राँखों में सूनापन भी ।
जिनदत्त ऊपर पहुंचा । उसने श्राज पहली बार शअ्रपनी प्रिया
शो ऐसा उदास और दुःखी देखा था। देखा तो सिहर गया और
ग्रोला-- ह
/प्रिये ! श्लाशा के विपरीत आाज में क्या देख रहा हूं। तेरा
जनदत्त निरा बनिया हो नहीं है, वह खड़ग चलाना भी जानता
१1 बता, आज किसे भृत्यु सुखकर लगी है ? किसने तेरा मन
ख़ाया है ?
| कुछ नहीं बोली भानुमती, वल्कि सिसक-सिसककर पुन
शीने लगी । जिनदत्त ने श्रपनें करचीर से श्राँसू पोंछ डाले । वक्ष
पल लगा लिया निज प्रिया को । बोला--
“मेरे मन में श्राशंकाए' न भरो प्रिये ! क्या तुम्हें भेरे ऊपर
ना विश्वास भ्रव नहीं रहा कि तुम्हारा मन दुखाने वाले को
नष्ट कर दूंगा ? तेरे मौन से तो मैं स्वयं भी बहुत दुखी हो
ऊंगा।
पति के प्रेमाग्रह से भानुमती को बोलना पड़ा । बोली वह--
प्र णेएदर ! मेरे दुधश्ख को तो आप भी जानते हैं । भेरा वह
ख भापका भी दू ख रहा है। पुत्र के बिना हमारा घर-आश्रांगन
वा है। भाग्य की प्रवलता देखकर झाप घैय॑ घारण किये रहते
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