धर्म और धर्मनायक | Dharma Aur Dharma Nayak
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
8 MB
कुल पष्ठ :
304
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)( १७८)
क्रारण राष्ट्रधर्म का लोप हो गया 1
जयचनंद के जमाने से लेकर, सोरजाफर तेथा उसके
वाद, श्राज तक हम ऐसी ही दुरवस्था देखते भरा रहे हैं ।
बंगाल में 'ईष्ट इंडिया कम्पनी” के कार्यकर्त्ता श्रपन्ी
फटिलता से देश को दुःख दे रहे थे श्रौर नमक जैसी सर्वे-
तरधारणोपयोगी वस्तु के ठेकेदार बन कर ऐसा श्रत्याचार
फर रहे थे कि जिस किसी के घर में पांच सेर नमक
नकल श्राता- उसकी समस्त सम्पत्ति जब्त कर ली. जाती
ग्री । यहीं नहीं, वे भ्रपत्ता व्यापार बढ़ाने के लिये तथा
एपना स्वार्थ सिद्ध करने के लिए प्रसिद्ध एवं कुशल बुन-
करों के हाथ के श्र गूठे तक काट लेते थे ॥१8
जरा उस जमाने की श्रोर ध्यान दीजिये । उस समय
त्याचारों का प्रतिकार करता अ्रसंभव सा हो गया था।
सका प्रधान कारण यही था कि जगतसेठ अ्रमी रचन्द तथा
हादाज नन्दंकुमार जैसे प्रसिद्ध नागरिक अपने स्वार्थ के
प्तिर देशद्रोही बन गए थे ।
भारत की बात जाने दोजिये । किसी दूसरे राष्ट्र
पतन के कारणों की खोज कीजिये । आपको मालम
गा कि उस राष्ट्र के नागरिकों ने प्रपता नगरघंस यथो-
व. रूप से पासन नहीं किया और इसी कारण उस राष्ट्र
ग अघःपतन हो गया ।
आज मुट्ठी भर विदेशी चालीस करोड़ भारतवासियों
##देखो 'प्लासी का युद्ध' बंगाल देहाल, नामक पुस्तक
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