आत्म शुद्धि का मूल तत्त्व त्रयी | Atma-shudhi Ka Mool Tattva Traya

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Atma-shudhi Ka Mool Tattva Traya by रतनलाल डोशी - Ratanlal Doshi

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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परम आराध्य अरिहंत देव १९ जउ२/ मम. 2, न 2 गदर 2, दिन जगरी तर मय मपपनतपरयापन्‍रपममानगनशररा पीसी पीसी न< है । इसे किसी भी प्रकार का आवरण नहीं रूग सकता । क्रेवलञान अपना उदाहरण आप ही है । केवलज्ञानी भगवन्तों की ज्ञान-शवित. को नापने की शक्ति, हमारे जैसे मलिनमति ,वालों में नहीं है-। जिस प्रकार सिद्ध अगवन्तों के स्वरूप एवं सुख को समझने में तक .की. कसौटी अनुपयुक्‍त है 4, कहा. है कि---/ सब्बे सरा णियद्वं ति, तक्‍का जत्थःण विज्जड, मई तत्थ ण गाहिया:। ४ ० 1: '--जहाँ सभी शब्द असमर्थ हो जाते हैं, वहाँ तर्क नहीं चलता और मति की गते भी वहाँ कुण्ठित हो जाती है । (आचारांग सूत्र १-५-६)। यही स्थिति केवलेज्ञान के विपय में भी 'है। : जिनेश्वर भगवन्तों का 'चरिंत्र पूर्णरूप से निर्दोष और परमोत्तम होता है। पाँच 'प्रकोर के चारिंत्र में ैधाख्यात चारियव सवं'से उत्तम और उल्केंप्ट होता हैं। इसे चारित्र से घढ़ कर अन्य' कोई! चारित्र नहीं हो सकता!। उनका उपदेश निर्दोप एवं गुणवेद्धक होता हैं। वे ऐसी कोई बात नहीं कहते, जिसंसे किसी प्रकार का दोप उत्पेत्न हो । '। ' अरिहंत भंगवान्‌ की परम वीतराग्रतां.का परिचय उसके प्रथम गणधर (जो पचास हजार साधु-साध्वी में अग्रस्थान रखते थे) के चारित्र से ज्ञात होती है-।.गणधर-भगवान्‌ की-भ्रमण भगवान्‌ महावीर प्रभु पर अनन्य भवित थी। पूर्वेभवों का स्नेह- संबंध भी था ही। वे.अधिकांश समय भगवान्‌ के निकट ही रहते




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