विज्ञप्तित्रिवेणि | Vigyaptitriveni
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
5 MB
कुल पष्ठ :
180
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)१९%
खुरत में गोपीपुरा नाम का ज्ञो साग है चदह सारे शहर में बि-
शिए-माग माना जाता है। इस भाग में जैनसमुदाय की विशेष वसति
है और सम्पत्तिशाली भी अधिक है। ध्रीविनयाविज्ञयज्ञी के समय
में मी यही भाग अधिक विशिष्ट था | आचार्य इसी ग्ोपीपुरे के
उपाधप में उहरे हुए. थे । कदि ने इस डपाश्रय की शोभा का बडा ही
आकपेक झऔौर घैभवयाल्म वर्णन किया है । देखिए--
मध्ये गोपीपु रमिद महान् श्रावकोपाश्रयोंडस्ति
कैलासाद्रिप्रतिमट इव प्रौदलक्ष्मीनिधानम् |
अन्तर्वत्यद्वतमतगुरुप्रौदतेजो मिरुच-
ज्ज्योतिमध्यस्थितमघवता ताविषेणोपमेयः ॥ १०१ ॥
मित्ती मित्तों स्फटिकसरुचो कुट्टिमे कुट्टिमे च
सड्कामंस्त्व॑ सुमग भवितास्याचलक्ष्यस्वरूप: ।
युक्त चैततरणिनगरोपाश्रयस्यान्यथा/भश्री-
हट शक्या न सद्ध वषुपैकेन युप्मादृशापि ॥ १०२ ॥
तस्य द्वाराह्मणस॒वि भवान् स्थैयेमालम्ज्य पश्यत्
साक्षादेवानिव हजनुपो द्रक्ष्यति श्राद्धलोकान् |
हस्त्यारूदानथ रथगतान सादिनश्वा्थेपारु-
प्यभीन् श्रोतुं रसिकहृदयान् शीघ्रमाटीकमानान् ॥१ ०३॥
उपाभ्रय के मध्य में जो व्याय्यान-मण्डप ओर व्याण्याता के
चेडने
यैने का सिंदासन था उसका स्वरूप पढिए-
मध्ये तत््याः श्रमणवसतेमंण्डपों यः क्षणस्व
सोथय॑ कान्त्याउनुहरति समां तां सुध्मी मघोनः |
मुक्ताचन्द्रोदयपरिचितस्वर्णमाणिक्यमूपा-
अ्रेणीदीत्ों विविधरचनाराजितत्तम्मथोमी ॥ १०५ ||
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