विज्ञप्तित्रिवेणि | Vigyaptitriveni

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Vigyaptitriveni by मुनि जिनविजय - Muni Jinvijay

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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१९% खुरत में गोपीपुरा नाम का ज्ञो साग है चदह सारे शहर में बि- शिए-माग माना जाता है। इस भाग में जैनसमुदाय की विशेष वसति है और सम्पत्तिशाली भी अधिक है। ध्रीविनयाविज्ञयज्ञी के समय में मी यही भाग अधिक विशिष्ट था | आचार्य इसी ग्ोपीपुरे के उपाधप में उहरे हुए. थे । कदि ने इस डपाश्रय की शोभा का बडा ही आकपेक झऔौर घैभवयाल्म वर्णन किया है । देखिए-- मध्ये गोपीपु रमिद महान्‌ श्रावकोपाश्रयोंडस्ति कैलासाद्रिप्रतिमट इव प्रौदलक्ष्मीनिधानम्‌ | अन्तर्वत्यद्वतमतगुरुप्रौदतेजो मिरुच- ज्ज्योतिमध्यस्थितमघवता ताविषेणोपमेयः ॥ १०१ ॥ मित्ती मित्तों स्फटिकसरुचो कुट्टिमे कुट्टिमे च सड्कामंस्त्व॑ सुमग भवितास्याचलक्ष्यस्वरूप: । युक्त चैततरणिनगरोपाश्रयस्यान्यथा/भश्री- हट शक्‍या न सद्ध वषुपैकेन युप्मादृशापि ॥ १०२ ॥ तस्य द्वाराह्मणस॒वि भवान्‌ स्थैयेमालम्ज्य पश्यत्‌ साक्षादेवानिव हजनुपो द्रक्ष्यति श्राद्धलोकान्‌ | हस्त्यारूदानथ रथगतान सादिनश्वा्थेपारु- प्यभीन्‌ श्रोतुं रसिकहृदयान्‌ शीघ्रमाटीकमानान्‌ ॥१ ०३॥ उपाभ्रय के मध्य में जो व्याय्यान-मण्डप ओर व्याण्याता के चेडने यैने का सिंदासन था उसका स्वरूप पढिए- मध्ये तत््याः श्रमणवसतेमंण्डपों यः क्षणस्व सोथय॑ कान्त्याउनुहरति समां तां सुध्मी मघोनः | मुक्ताचन्द्रोदयपरिचितस्वर्णमाणिक्यमूपा- अ्रेणीदीत्ों विविधरचनाराजितत्तम्मथोमी ॥ १०५ ||




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