भारत में शिक्षा | Bharat Men Shiksha

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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१० भारत में शिक्षा वौद्ध शिक्षा-पद्धति क्री एक और विशेषता थी | वह थी संघीय प्रणाली । इसके अ्नुत्तर छोठे-मोटे वैयक्तिक विद्यालय एक बड़े समुदाय से सम्भान्धित रहते थे । इनके छात्रगग अपने उपाध्याय से वैयक्तिक शिक्षा अवश्य ग्रहण करते थे, तिस पर भी वे केन्द्रीय सखा के सदस्य होते थे तथा उसके समस्त सामूहिक च्यापारों में भाग ले सकते यथे। इस प्रकार यद सघीय प्रणाली वर्तेमान संबंधीय विश्वविद्यालयों से मिल्ती-जुलती है। पाय्यक्रम,--बओऔद्ध शिक्षा में दो प्रकार का पाव्यक्रम होता था: (१) छौकिक ओर (२) धार्मिक । प्रथम पाठ्यक्रम का उद्देश्य था साधारण ख्री-पुरुयों को उचित नागरिक बनाना तथा उन्हें अपने भावी जीवन के लिए तैयार करना | इस पाठ्यक्रम में विविध प्रकार के कलछा-कीशछ, शास्रार्थ, सारथीविद्या, धनुर्विद्या, मन्त्रविद्या, चित्रकारों, संगीत, चिकित्साशास््र प्रमृति होते थे । धार्मिक पाठ्यक्रम मिक्षु तथा मिक्षुणियों के लिए होता था। इसमें इन पाठ्य- विपयों का समावेश था : (१) बौद्ध घार्मिक साहित्य, जो नो भागों में विभक्त था, (२) मठों तथा बिद्वारों के निमोग का व्यायझरिक ज्ञान और (३) विद्वरों को दिये गये दान की सम्पत्ति का दिसाव-कितात् तथा प्रतनन्ध | इसके अतिरिक्त बौद्ध धर्म ने जन-शिक्षा की ओर मी ध्यान दिया ) बौद्ध उपाध्यायों का यह कर्तेध्य था कि थे अपने परिभ्रमण में प्रवचन करें। इसके द्वारा वे गृदसखों को धर्म की शिक्षा देते ये तथा उनकी शक्बाओं का समाधान करते थे | उपाध्याय के पीछे-पीछे उनके शिष्यगण प्रवचन सुनते चलते थे । अध्यापन-विधि.--औद विद्वारों में साधारणतः प्रवचन या व्याख्यान-द्वाग शिक्षा दी जाती थी। उपाध्याय एक मंच पर बैठते ये, और मिश्ुगण उनके तीन ओर बैठकर मौजपूर्वक प्रवचन सुनते ये । जहेँ। कुछ शद्भा होती थी, वहाँ विद्यार्थीगग उपाध्याय की आशा लेकर प्रश्न पूछते ये। प्रवचन प्रगाली के अतिरिक्त बौद्ध शिक्षाकम में ब्याख्या-ग्गाडी, प्रश्नोचर-विधि तथा याद-विवाद की रीति का प्रमुख स्थान था। इस काल में लिपि फा प्रचलन हो गया था | सम्मचरतः पुस्तकाधारित अध्यापन-विधि मी घाडू थी ) इसके अतिरिक्त, मिश्षुगग आपस में पाठनच्ची या शान-विनिमय भी किया बरते ये । देदशाटन तथा प्रकृति-निरीक्षण को मी मान्यता दी जाती थी । योद् विभ्यविदालय.--त्रीद शिक्षा भें सबसे अधिक उछ्ेखयोग्य चोद विश्ववियात्य : नाहन्दा (विद्रे, वकछमी (गुजरात), जवेन्द्रविद्यर (वाब्मीर), जत्मधर विज्ञर (पंशप्र), विकमशिठा, ओडन्तपुरी तथा जगदछ (बंगाल), इत्यादि | यहीं विश्व के




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