दिशा बोध | Disha Bodha
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
3 MB
कुल पष्ठ :
194
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)क्सि पर छोड गई । जीत भी ता यह एसा नही करती थी। अभी पिछल
दिना की वात है वीमार थी, आरक्त थी, लकिन जब उसन सुता कि मै
बेसन का चीला खाना चाहता हू तो तुरात उठ बढी । चूल्हू मं थागे
थी। उस पर तवा रखा और चीला बना डाला । बस, वहीं उसका
अततिम समपण था । फिर चूल्ह पर नही बैठ पाई ।
रामदास बोला--लेक्नि यहा इस भरी रात म क्या आ गया।
डर नही लगा ।!
न चौधरी मैं अपनी भागवाती को साथ देयता हू वह शरीरस
भस्वस्प हुई है मनन और जात्मा से नहीं। बह जशर मेरे जाय-पास
होगी ।
भर पगले ! मेरी तरह तू भी जभागा है | मे भी ता अपने मलयू्
को देयन यहाँ आ गया । यहाँ बला क्या रख है राख का ढेर ह
उसने सास नरी--जरे भगवाना । यही ता भयवाव की लीला है। उसका
सेल है। यह जिदगी तो मेला है। यो बिछड गया। वह फिर पही
मिलता । फिसी उमरे जम म साथ होता हो, ता इस कौन जानता है ।
बड़े बड़े पडित भी सिर खपा कर रख गये। उस संगवाय का रहस्य नही
पा सके। आ, चल गाव की तरफ लौट था । अपन घर जाकर पड ।
भगवाना विलख उठा--अब मेरा कोई घर नही, चौधरी ' घर ता
प्रवाली के साथ गया । वह क्या मरी मु को मार गई। अब मैं उसी
जो याजता हु । उसे पाना चाहता हू | जखर मेरा उसका कइ जामसा का
साथ रहा। मुझे भरीसा है बह अवेली देर तक नहीं रहगी। झुधे बुला
लैगो । मेरा हाथ पकड लेगी ।
चोधरी रामदास उस वद्ध धगवाना को देय स्वयं भी करुण हा
उठा | उसके यल मैं बुछ आ गया । जब वह बार-यार थूक क साथ उसे
भैटन लगा ता तभी दूर एड़े सियार ने गोर मचाया | श्मशान का
वह भयावह हृश्य और अधिक कछोर हा उठा । तभी रामदास न गाँव
वी ओर देया--'आ चल मेरे साथ । आजचुछ खाया भी थाया
नहीं। न
भगवाना बोला-- कल पडीस वी बहू दो राटो दे रद थी व भी
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