आँखों में | Aakhon Me

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Aakhon Me by श्री हरिकृष्ण प्रेमी - Shree Harikrishn Premee

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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३ आँखों में हुपु भी “झनुमृति ! चमुमृति !” की प्रपल पुकार मजफर दी सरल साहिस्पिकों पर रैय जमाना चादते हैं भौर रुप सुम्दससुन्द्र राम्दों फी अनोसी एपं भ्राष्पफ योजना में प्रिपी हुई निर्ेंशता को ही उथ फोटि थो ध्राप्यास्मिक पहेली क्ले रूप में उपस्थित करके कवि कइ्लाने की इुष्या रणते हैं। सौमाग्प या दुर्माग्ययरा येघारे “प्रेमी” इनमें से फिसी भी भेणी में नहीं भाने ) उनहा भोला द्वद॒प केयत येदना फी दूँसी लेफर ही करिता की इस झेंची हाट में भा निफला है। ये उपयुक्त भ्रम- साप्य उपायों से “ मद्ामहिम ” कदछाने की क्षमता नहीं रखते । प्राहनिफ प्रतिभा फी प्रेरणा होते ही ये देंचे-ऊँचे शब्दों फो घुन-शुभकर जइना भूल जाते हैं, ध्रग्मन्संयम के नाम पर भावों की घणल मंदाफिनी भा संवरण नहीं कर पाने भार निष्कपद हृदप फी पावन पुछफ फी स्पष्टता फो बरदस रहस्य यनाने की चिन्ता भी उनझे घश की बात नहीं रह जाती । उनका झजुमव है, फि जिस प्रकार प्रयत्त करके फोई कुध लिखने में यशस्त्री नहों हो सकता, उसी प्रसार बलात, कोई कुछ म लिखने में भी सफलता नहीं पा सकता । उनके लिए ये कहते हैं, कि लिफने की हार्दिक इच्चा न द्वोने पर जैसे लिखना नितास्त चशक्य ऐै, पैसे ही प्रतिभा की श्रयल स्फूर्ति होने पर म लिखना भी अत्यन्त चरसस्भव है। जब में “प्रेमी”! फी कविता पढ़ना हूँ, सो सुमे सत्यण प्रतीत होता है, मानों कोई पागल मरना यदे येग से यद्तता जा रहा है। थयए अपने करय-प्रवाह में फभी-कभी अपना इतिहास भी भूल जाता हैं. और कभी:




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