तत्त्व - चिन्तामणि भाग - 4 | Tattv - Chintamani BHag - 4

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Tattv - Chintamani BHag - 4 by जयदयाल गोयन्दका - Jaydayal Goyandka

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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महारज युधिष्ठिरे जीवनसे आदं शिष्ला ५ इनकी एक न सुनी 1 तव खचार होकर अर्जुनने घोर युद्हयारा गन्धर्वको परास्त कर दिया । तत्पश्चात्‌ परास्त चित्रसेने अपना परिचय दिया और दुर्योधनादिको कैद करनेका कारण बताया । यह सुनकर पाण्डवोंको वडा आश्चर्य हुआ । वे चित्रसेन और दुर्योधनादिको लेकर धर्मराजके पास आये | धर्मराजने दुर्योधनकी सारी करवूत सुनकर भी बड़े प्रेमके साथ दुर्योधन और उसके सब साथी वंदिर्योको युक्त करा दिया ] फिर उसको स्नेहपूर्वक आश्वासन देते इए उन्होंने सबको घर जानेकी आज्ञा दे दी । दुर्योधन खलित ` होकर सवके साथ धर खट गया | ऋषि-सुनि तथा ब्राह्मण छोग धर्मराज युधिष्ठिरकी प्रशंसा करने खगे ! यह है महाराज युधिष्ठिरके आदरं जीवनकी एक धटना । निर्वैरता तथा धर्मपाछनका अनूठा उदाहरण | उनके मने दुष्ट दर्योधनकी काटी करतूतोको सुनकर भी क्रोधकी छयाका भी स्पर्श नदीं हआ । इतना ही नही, उसके दोषोकी ओर उनकी दृष्टि भी नहीं गयी । बल्कि उनका हृदय उष्टे दयासे भर गया । उन्होंने जल्दी ही उसको गन्धर्वराजके कठिन बन्घनसे मुक्त करवा दिया । यहींतक नहीं, उनकी इस क्रियासे दुर्योधन दुखी और लज्नित न हो; इसके लिये उन्होंने प्रेमपूर्ण वचनोंसे उसको आश्वासन भी दिया | मित्रॉंकी तो बात ही कया दुःखमे पड़े हुए शन्नुओके प्रति भी हमारा क्या कर्तव्य है, इसकी शिक्षा स्प्टरूपसे हमे धर्मराज युधिष्ठिर दे रहे हैं | न. ध्य्‌ यह बात तो संसारमें -प्रसिद्ध ही है कि दर्योधनने कर्णकी




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