श्री भेद ज्ञान भाग 2 | Shri Bhed Gyan Bhag 2

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Shri Bhed Gyan Bhag 2 by ब्रह्मचारी मूलशंकर देसाई - Brahmchari Moolshankar Desai

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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दर झान हे गेंद तीनोंक़ाल रहता है और पयोय ऋ्रमरर्ती हैं अथीव्‌ य समय में पदलती रहती हैं। ऐसा गुण पर्यायक्रों नो रण फरता है वह द्र्य है। ग्रज्न---लोकप छह ही द्रव्य क्यो मानना चाहिये ? ये ढियने में तो दो ही झाते है ? १ जीय * पुदुगल। उत्तर--जीय और पुदुगल तो दिथने मे थ्राते हैं । | टी द्रापों के चलने मे नो निमित्त होता है यह तीसरा द्र-य है । जीय और पृदूगलओों जो स्थिर रहने मे मित्त है यह चीथा अधर्मंद्रव्य है | जीय और पुदूगल को ने + लिए म्थान देने में जो निमित्त जारण हैं पढे चया आजाश द्रव्य है, और भीय एप पुदूगलरी समय प्रयम अयस्था उदलनेमें नो तिमिच हैं पह छठा पाल “य है | इसलिए झट द्रव्य हैं। छह से ऊम द्रग्प नहां एप छह से पिशेष द्रव्य भी नहीं हैं। छह द्रयम एक श्गलद्र व्यद्दी स्पी है, याफ्री के द्रय भ्रसपी है। इन उह “यों में से 7 जीडय ही चेतन हे अर्थात निसमे नने देखने क्रीशक्षिहे , थरारी ऊे पराच द्राय चितन है | अन्ञ--रूपी द्रग्यवा क्या अर्थ होता है ? उच्चर--निस द्रव में रूप, रस, गन्थ, और स्पर्श हो मजे रूपी अथोव्‌ मूर्च द्र-्य महा जाता है, और निसम




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