श्री जिनाराम | Shri Jinaram

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Shri Jinaram by ब्रह्मचारी मूलशंकर देसाई - Brahmchari Moolshankar Desai

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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( ६ ),.. विषय पृष्ठ ज्ञानादिक एवं सुखादिक का बाधक कम अन्तराय शेरे८सुख दुःख का कारण अन्तराय तथा अधाति थे पु श्रवधि ज्ञानावरण के क्षय से भ्रवधि ज्ञान की प्राप्ति ३३६ चारों कषाय के भेद तीत्न मन्द अपेक्षा से है ? ३३६ जिनागम में अलकार कहां तक हो सकता है ? ३४० पत्नो और जिनवाणी समान सुख के कारण है ३४० व्यस्तर देव का निवास खड़ा पत्ते में होते है. ३४०तीर्थंकर के केश से क्षीर समुद्र का जल काला होगया ' ३४१वीतरागी मुनिराज की जठा बढ़ जाती होगी ? ३४१भाले के अ्रणी पर आहार दान ३४१ वीतरागी घुनिराज की भावना ३४२ द्रव्य कर्म अधिकार ३४३ज्ञानावरणीय दर्शनावरणीय की श्रसंख्यातप्रकृति ३४३ नाम कर्म की असंख्यात लोक मात्र प्रकृतियाँ. ३४४ प्राणातिपात से कर्म बन्ध होता है? . : ४४५ कर्म की उत्तर प्रकृतियों का स्वरूप ३४५ज्ञानावरणीय का उत्कृष्ट बन्ध ज्ञान की उप-योग रूप श्रवस्था में होता है डेइृर ज्ञानावरणीय दर्शनावरणीय की प्रकृतियाँ सब कर्मो मे कितने भाग है ३४६निद्रा नाम की प्रकृति स्वसंवेदन का घात करती है?सुख दुःख का उत्पादक वेदनीय कम है ?दर्शन मोहनीय कर्म का स्वरूपसंक्लेश स्थान तर्था विशुद्धि स्थान में क्‍या भेद है ?सुक्ष्म स्थिति बन्ध कहाँ होता हैभिथ्यादि कर्मो की उत्कृष्ट अनुभाग वृद्धि तथा हानि किसको होती हैमोहनीय कर्म की उत्कृष्ट वृद्धि हानि का स्वरूप३४७ २४७ ३५०३१०२ ३५२देशरेश्श्विपय पृष्ट मोहनीय कर्म की स्थिति बन्ध में विशेषता 7 ३५९ आयु बन्च और मरण किस गुणस्थान में होतादश्रएनाम कम का विशेष भेद श्प्रः योत्र कम, नीच भोत्नी मनुष्य कौन है ? ३६६ शूद्र मुनि को आहारदान दे सकता है ? ३६६ अन्तराय कर्म े ३६८ स्वंधाती तथा देशधाती का स्वरूप ३६ जीव, पुद्गल, भव, क्षेत्र विपाकी कम ३७: उदय और उदीरणा मे क्या ग्न्तर है-? ३७: उपशम निधत निकांचित का स्वरूप ३७: सब कर्म की प्रकृतियों में वहुभाग ३७. उदय विच्छेद किस प्रकार होता है द्रो मत ३७ उदय विच्छेंद बाद में बन्ध विच्छेंद प्रकृतियाँ २७, बन्ध उदय साथ में विच्छेद प्रक्ृतियाँ ३७; बन्ध विच्छेद बाद मे उदय विच्छेद प्रकृतियाँ ३७, प्र उदय से बन्धने वाली प्रकृृतियाँ ३७! स्वोदय परोदय से बन्धने वाली प्रक्मृतियाँ ३३;निरन्तर बन्धने वाली प्रकृतियाँ ३७श्रुव बन्ची प्रकृतियाँ ३७! सान्‍्तर बन्ध प्रकृतियाँ ३७ सानन्‍्तर निरन्तर बन्ध प्रकृतियाँ ३७९ क्षीण अक्षीण स्थितिक का स्वरूप ३७ किस कर्मों की उदीरणा होती है ? ३७: क्षीण अक्षीण स्थितिक के स्वामी ८ क्षीण स्थितिक प्रदेशाग्न के जघन्य स्वामीत्व ३८२ प्रदेशाग्र के भेद इ८:निषेक स्थिति तथा उदय स्थिति का जघन्य स्व्रूपमिथ्यात्वादि प्रकृति का स्वामी तथा संक्रमण का स्वरूपप्रकृति संक्रमण का अन्तर काल भ८जचन्य स्थिति संक्रमण का स्वामित्य ३८६भ्रुजाकार संक्रमण का स्वामित्व श्दभुजाकार संक्रमणों के काल का वर्रान ह




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