स्वर्ण किरण | Svarn Kiran

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Svarn Kiran by श्री सुमित्रानंदन पन्त - Sri Sumitranandan Pant

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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स्वर सकरफू साइन ेभामात+ बरसात जग; प्रच्छाय गुहाओं में , वाष्पों के गज भरते नव गजेन , चंचल विद्युत्‌ लेखाएं थीं लिपट दूगों से जातीं तत्क्षण ! ताराओों के साथ सहज शशव स्वप्नों से भर जाता मन , उठते थे तुम अंदर में सोन्दर्य स्वप्न श्रृगों पर मोहन ! मेघों वी छाया के संग संग हरित घाटियाँ चलतीं प्रतिक्षण , वन के भीतर चित्र तितलियों का उड़ता फूलों का सा बन ! रंग रंग के उपलों पर रणमण उछल उत्स करते कल गायन , भरनों के स्वर जम से जाते रजत हिमानी सूत्रों में घन ! रे भीम विज्ञाल शिलाओं का वह मौन हृदय में अब तक अंकित फेनों के जल स्तंभों से वे निर्भर रभस [वेग से मुखरित चीड़ों के तर बन का तम साँसें भरता मन में आंदोलित




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