रयणवाल कहा | Rayanawal Kaha

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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ब्द्वतं कभी वभी एक छोटी-सी घटना भी विशेष प्रेरणा देने वाली हो जाती है । उससे घुप्त भावनाएं जागृत हो उठती हैं और व्यक्ति उन भावनाओं को साकार वबरन के लिए उद्दत हो जाता है । प्राश्त भाणा के प्रति मेरा पुरुषार्थ ऐसी ही एक सुप्नेरणा का परिणाम है । उस समय मैं अम्बई मे प्रवास कर रहा था । तीन वर्ष पूर्ण हो चुके थे । चौथे वर्ष का वर्धावास से 'विलेदारले! में विता रहा या। साधनाश्रम का सुरस्यस्थनल और नगीनभाई तथा सुशीलाबहन की भक्ति अपूर्ब थी ॥ एवं बार मैं बाहर यया था। रास्ते में मुझे प्रोफेसर 'भियाणी' मिले । मे ग्राइत भाषा बे! गभीर विद्वान एव उसके अनन्‍्य पक्षयातों थे। बातलाप के प्रसय मे उन्होने रहा--' मुनिजी, मुझे अत्यन्त खेद के साथ बहना पड़ रहा है कि प्रावृत भाषा के प्रति सवंत्र छदासीतता है। पहु भाषा सभी भाषाओं की जननी, सहज और वबुद्धिगम्य है, फिर भी इसके प्रति उपेक्षा वरती जा रहो है। सौर तो बया--भगवान महावीर वे अनुयायी भी इस ओर इतने प्रयत्त- शीतल नही देखे जाते । जैन मुति भी इसे प्राय नही जानते और जो जानते हैं वे भी इसको गहराई में प्रवेश नहीं कर पाते | मैंने अनेक मुनियों को इस भाषा के अध्यधन के लिए प्रेरित किया, किन्तु रुचि के अभाव में वे इस और विषाप्त नही कर सके 1 प्रोफेमर भियाणी की यह कदूक्ति मुझे भक्षरण सत्य प्रतीत हुई । अपने आगमो की भाषा मधुर प्राहृत के प्रति अपनी उदासीनता अवुचित एवं मस्चहय लगी, जबकि हिन्दू सुध्लिम, ईसाई और सिक्ख आदि अपनी-अपनी मापा का क्तिना यौरव अनुभव करते हुए उसके प्रति जागरूक हैं । प्राकृत का अध्ययन : उस समय ग्रेरी अवस्था ५१ वर्ष की थी) मैंने प्राकृत भाषाओं का मौलिक एवं गम्भीर अध्ययन कया । प्रारम्भ में मैंने कलिकालसववेन्ञ आचार्य हेमचर्द्र हारा रचित “अप्टम अध्याय' को कण्डस्थ किया । प्राकृत भाषा सबत्धी तथ्यों वी जानकारी के बाद मैंते 'समरादह्च कहा पडम वरिअ 'पाप्तपराहुचरिअ', गाहा सप्तस्तोी' आदि ग्रल्थों का पारायण क्या । अध्ययन- काल में प्राइव में जिखे की ब्रेरणा जग्री। यद्यपि मैंने कुछेक वर्षों पूर्व




User Reviews

  • NEELAM

    at 2024-05-25 12:38:56
    Rated : 4 out of 10 stars.
    प्रकृति के अनुपम ग्रंथ को हम तक पहुंचाने के लिए आप की पुस्तकालय का धन्यवाद साथ ही है आशा करती हूं कि आप व्याकरण के साथ ही अपने ग्रंथ को हम सबके लिए बताओ ताकि हम सब उनमें आई व्याकरण विशेषताओं से परिचित हो सके
  • NEELAM

    at 2024-05-25 12:36:49
    Rated : 4 out of 10 stars.
    सादर जय जिनेन्द्र, कृपया कथा की... गाथा संख्या, भाषा, व्याकरण जानकारी भी संलग्न करने की कृपा करें..... पेज नंबर 26 प्रिंट नहीं हुआ है कृपया वह भी प्रस्तुत करें आपका प्रयास बहुत अच्छा है हमें आपकी इस इस विधा पर बहुत साधु बाद है इसी तरह , प्राकृत भाषा के के विभिन्न ग्रंथ सहेंजएंगे सवारेंगे आपका बहुत-बहुत बहुत साधु-बाद धन्यवाद कि आपने प्रकृति की विरासत को हम सब के समक्ष उपलब्ध कराया
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