श्रीराम चन्द्रिका | Shriram Chandrika
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
22 MB
कुल पष्ठ :
378
श्रेणी :
हमें इस पुस्तक की श्रेणी ज्ञात नहीं है |आप कमेन्ट में श्रेणी सुझा सकते हैं |
यदि इस पुस्तक की जानकारी में कोई त्रुटि है या फिर आपको इस पुस्तक से सम्बंधित कोई भी सुझाव अथवा शिकायत है तो उसे यहाँ दर्ज कर सकते हैं
लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
No Information available about पं. रूपनारायण पाण्डेय - Pt. Roopnarayan Pandey
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)शमचन्द्रिकों सटीक | १५
“ जनायो जता पौवेक रघुवेशिन को इतिं शेष: या अकारः अरुण पताकां
'पैक्किको. ब्णेन करि यह पदसों दूसरी श्वेतपताका पंक्तिकों अवलोकि वर्णन
, लगे सो जानो भेरी करी कहे बनाई' विश्वामित्र सष्टि करन लागे हैं तब
नदी बनायो है सो आकाशमें हे पुराणोक्त हे कविग्रियाहू में. कल्यो. है कि
'#ऊंचे. ऊँचे- अटनि पताका अति ऊंची जनु कौशिककी कीन््ही गंगं खेलें ये
तरलतर । ” अथवा मेरी कहे हमारी मगिनी: मागिनीति शेष) । दिवि “कहे
“दिव्यरूप कंहे खेलति है. आकाशमें कोशिकी नदी है सो. “विश्वामित्र की
-भगिनी है ३८ ॥
दोहा.॥जीति जीति कीरति लई शब्नकी बहुभांति॥
पुरपर बाँधी शोभिजे मानो तिनकी पांति २६ त्रिमंगीडेद ॥
सम सब घर शोभेंमुनिमन लो भें रिपुगण क्षोमें देखिसबे। बहु
दुँदुभि बाजें जनु घन गाजें दिग्गज लाजें सुनत जबे॥ जहँतह
श्रुति पढ़हीं विधन न बढ़हीं जय यश मढ़ही सकल दिशा। स-
. बेइसब विधिडम-बसत यथाक्रम देवपुरीसम दिवसनिशा ४०॥
तांही श्वेंतेपतांका पंक्विमें फेरिं तक है २६ द्वेलंदंकों अन्ध्रय' एक हे प्षोंमें
टरतें हैं हम समथे रातिउ दिन ' देवपुरी.' सम है. यामें श्लेषाथेहू है: केसी
देवपुरी ओ अयोध्या है सम॑ बरांवरि है दिन राति' जामें पंटत' बंढुँत॑ नहीं
छः महीना उत्तरायण दिन रहत है -दक्षिणांयनः राति: रहते है ओ संम हे
. .तुल्म आनन्ददायक है रातिउ 'दिन:जामें रात्रिहुको चोरादिको: भय नाहीं
होत ओरअथे दुवो: पक्ष एकही:है ४०:॥ ;
. ;““कविंकुलविद्याधर सकलकलाधर राजराज.वर वेष-ब्ने।
« गएपति सुखदायक पशुपति लायक सूर सहायक कोन गने॥
सेनापति बुधजन मंगल गुरुजन धमराज़ मन बुद्धि घनी। बहु
: शभ मनसाकर-करुणामय- अरु सुरतरंगिणी-शोभसनीं४१॥
फ़ेरि.फैसी है देवपुरी कवि शुक्र ओ कुलेंकहे समूह विद्याधरनके विद्या
' धर देवयोनि विशेष है ओ. सकलकंलाधर' चन्रमा आओ . राजराज झुंबेर-ये
सब “धरवेष: कहे: सुंदर -वेषः कहे रूपसों वने हैं ओ सुखदायक जो' गणपति
. 'गंणेश हैं औ:लायक कहे ओेए्ट पशुप्ति महादिव' हैं ओ. सूर कहे सूये ओर
User Reviews
No Reviews | Add Yours...