कालिदास का भारत खण्ड १ | Kalidas Ka Bharat Khand 1
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
11.55 MB
कुल पष्ठ :
352
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)षं कालिदासका भारत
नमी
कहना गलत होगा कि वह ग्रन्थ समसामयिक वृत्तान्तकों प्रतिविम्वित
करता है । इस सबंध्म दूसरी वावा हूं देवके विविव भागोमें स्थानों,
पवतों श्रादिके समान नामोका होना । उदाहरणत” कालिदास-द्वारा
उल्लिखित* कोसल वौद्ध सुत्तोमेंर उत्तरका प्रदेण माना गया हैं पर
'उसीका उन्लेंख दणकुमारचरितमे* दक्षिण प्रदेगके रूपमें हुआ हूँ ।
रघूवण उत्तरी राष्ट्रको उत्तर कोसल कहता हूँ ययपि कोसलका प्रयोग
उत्तर कोसलके लिए भी हुम्रा हें और केवल एक वार उसका प्रयोग
'रामकी माता श्र दणरथकी रानी कौसल्याकी मातृभूमिके रूपमें हुमा
है । इसी प्रकार निपव' मालवाके” दक्षिण _स्यानविशेषका च्योतक हैं
और साथ ही कावुल 'नदीकें उत्तर शरीर गन्वमादनके पथ्चिमके एक
पर्वेतका भी नाम हूँ जिसे ग्रीक कभी परोपमिसस कहते थे श्रीौर आ्राज
हम हिन्दुकुन कहते हूं । इस सवबकी तीसरी झसुविवा एक ही स्थान
अथवा जनताके अनेक नामोके कारण उपस्थित हो जाती है, जैसे मगव
की राजवानीके लिए कुसुमपुर, पृष्पपुर” श्रीर पाटलिपुत्र तीनों नाम
प्रयुक्त होते हैं शौर वराड ( विदर्म ) की प्रजाके लिए बैदर्भ” श्रौर
ऋ्रयकैलिक” । कभी-कभी तो यह झणुद्धि श्रनानवण प्रस्तुत हो गई हूँ
जैसे, झयोव्याके लिए साकेत नामका प्रयोग । रघुवणमें दोनों नाम
पर्यायवाची हूं श्र मल्लिनाथने दोनोका एक होना स्वीकार किया
है” । परन्तु चूंकि दोनो नामोका प्रयोग वौद्ध साहित्यमें मिलता हूं इससे
₹ रघुबंश, €,१७ । २ मार्क कोलेन्स: दि ज्योग्रेफिकल डेटा
ऑफ दी रघुबंध एण्ड ददाकुमारचरित, पूृण ६। 3 वही । ४ रघु०,
8,१७। ५ वहीं, १८,१ 1 ६ वर्गेस : एन्टिक्विटीज औीफ काठियावाड़
एण्ड कच्छ, पृ० १३१ । ७ लंसेन : हिस्ट्री ट्रस्ड फ्रोम वे क्ट्रयन ऐण्ड
इण्डो-सीथियन क्वाइन्स इन जे० ए० एस० वी०, € (१८४०) पृ०
'इंदष्ट, नोट । ८ रघु०, ६,२४1 € वही, ६० । १० यही
चर; ७; दे । ११ वही, पे, ३१ (टिप्पणी) ।
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