कल्याण - कारकम | Kalyana Karakam

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Kalyana Karakam by वर्धमान पार्श्वनाथ शास्त्री - Vardhaman Parshwanath Shastri

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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रब अॉफिलबल अल बिसी>मपन लीड ची, ओर जअत 2» तक जन बन बल कक. #ह। अीअा हे। बे ब5। ऑडडथ 3 हट आज ऑिडिटअडडिड *बल बट ही बे पचानन पं, गंगाधर गुणे शार्त्नजी इछाज के लिए आये थे | उन से उन्होंने कहां था कि मुझे जल्‍दी अच्छा कर दो | क्यो कि इस दीपावछी कन्शेहन टिकेट के समय मे यहांपर एक वचक सम्मेलन करना ह. | उस समय जन वेद्कग्रथ' कल्याणकारक की प्रकाशन समारंम करेगे | जनायुपद की महत्ता के सम्बन्ध मे चचो करेगे | किसे मालुम था कि उनकी यह भावना मनके मनमे ही रह जायगी। विशेष क्‍या * धर्मवीरजीने इहलोक यात्राको पूर्ण करनेके एक दिन पहिले रोगशय्यापर पड़े २ मुझपे यह प्रश्न किया था कि “ पंडितजी ! कब्याणकारकका औपबिकोप तयार हुआ या नहीं * अब मंथ जल्दी तेयार होगा या नहीं ” उत्तरम मने कहा कि “ रावसाहेव ! आप विलकुल चिंता न करे | सत्र काम तयार है | केवड आपके स्वास्थ्यडाभकी प्रतीक्षा है “ परतु भवितब्य बरवान्‌ू 6 । बीज वोया, पानीका सिंचन किया, पारछः पोध्षकर अकुरको वृक्ष बनाया | दक्षने फछ भी छोडा, माछी मनमे सोच रहा था कि फछ कंत्र पकेगा और में कब खाऊ ? परंतु फछके पकनेके पहिले ही वह कुशरढ व उद्यमी माठी चलछ बसा । यही हाढुत स्तर. वर्मबीरजीकी हुईं | पाठक उपर्युक्त प्रकरणसे अच्छीतरह समझ सकेगे कि धर्मबीरजीकी आत्मा इस ग्रंथके प्रकाशनकों देखनेके लिए कितन अधिक उत्सुक थी / परतु देवने उसकी पूर्ति नहीं होने दी | आज ये सब प्मृतिक विपय वनगये है | किसे माठुम था कि जिनके नेतृलम जिसका प्रकाशन होना था, उसे उनकी स्वृतिभ प्रकाशित करनेका समय आयगा “। परतु खगाँथ आत्मा खग में इस कार्यकों देखकर अत्रच्य ग्रसन ही जायगा। उसके ग्राँत हम श्रद्धाजाठ समपण फरते हू | किम ५ ० प्रथके प्रकाशनमे कुछ विछत् अवद्य हुआ। उसके लिए हमे जो इस ग्रथकी ग्रतिया प्श ध्उ ग्राप थी वही कारण है | प्रायः सर्व प्रातिया अछुद्ध थी | इसके अछावा- प्रेस कार्पीका सशोवन पहिले मुंबईके प्रसिद्ध पेध् पं. अनतराजद्र आउुवरदाचाय करत थ । वादमे अहमदनगरके वैद्य पं, विदमाधव शास्री करते थ । ब्सम काफो समय डगता था। ओपषधि--काषको कई मापावोम तैयार करनेके लिए वेगछार आदि रथानांस उपथुक्त ग्रथ प्राप्त किए गए थे | अंतिम प्रकग्ण जो के बहत हा अथ॒द्ध था जितकाजडए हम काफ ममय छााना पडा, तथापि हमे सतोष नहीं हो सका | इतांदे अनेक कारणांस ग्रथ के प्रकाशन में विरेंव हुआ | हमारी कठिनाईयोको ठक्ष्यम रखकर इसे पाठक क्षमा करेगे | प्रतियोका परिचय इस प्रथ के द्वेपादन में हमने चार प्रतियाका उपयोग किया हैं, जिनका वि निम्त” लिखित प्रकार है. |




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