संस्कृत साहित्य का इतिहास | Sanskrit Sahitya Ka Itihas

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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६ ४ )» का वर्शंन बहुत द्वी संक्षिप्त है। विशिष्ट कवियों के प्रशंसातमक प्राचीन पद्य प्रत्थ के अन्त में परिशिष्टरूप से दे दिये गये है क्लितर्मे ग्राचीन आज्लोचको ने अपना कविस्वयसय ससीकुण सरसता से प्रस्तुद किया है । क हमें इस यात से प्रसन्नता हो रही है. कि इस भनन्‍थ का प्रचार साधारण पाठको तथा विश्वविद्याठय के छात्रों भ॑ विशेष रूप से हुआ है। अनेक विश्वविद्यात्षयों ने छापने पावध्यप्रन्धों में इसे निर्धारित किया है। लखनऊ, प्रयाग, राज्मपुदाना तथा काशी के विश्वविद्यालयों ने इसे बी. ए. की परीक्षा में निम्वय कर इस गअच्ध का गौरव बढ़ाया है । इसके छिए इस इस” अधिकारियों के प्रति अपना आभार प्रहशन करते है । इस परिवेधित संस्करण में प्रत्थ' का परयाप्त संशोधन कर दिया गया है। हमसे 'आये संस्कृति के मूलाघरः सलाम लबीद _ प्रन्थ में वैदिक साहित्य का विस्तृत इतिहास प्रस्ठुत किया है। पतः इसका बणुत यहाँ से हटा दिया गया दे। पुराणों का विस्तृत परिचय विषय की पूर्ति के लिए इस्र बार दे दिया गया है। आशा है कि इन आवश्यक परियतेनो से श्रस्थ छी उपादेयता में विशेष वृद्धि होगी। “संस्कृत कवि चर्चा? तथा 'कवि और काब्य? चासक मेरी रचत़ायें इस इतिहास के पूरक मन्थ है जिसमे कवियों दी समीक्षा विस्तार से छो गई है। जिश्लाछु पाठक इसका अवलाकन अवश्य करें। काशी. “ के गणेश चतुर्थी, ६००४ ' ः “भच्यकार ५८-१-४६ हि श




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