वेदान्त सिद्धांत मुक्तावली | Vedanta Siddhanta Muktavali
श्रेणी : धार्मिक / Religious
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
10 MB
कुल पष्ठ :
204
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)_ पगुबादसहिता... भांपानुवादसहितां १३
जीवत्ह्न भेदस्य उपाधिरपि अज्ञानमेव वक्तव्यम्, अज्ञानकार्यस्थ कादा-
चित्कल्वेन जीवत्रह्मविभागालुपाधिकत्वात्। तम्र नाउज्चः, भेदोत्पत्तेः पूर्वमेव
केवले आत्मनि अज्ञानसिद्धेमेदानपेक्षणात् । स्व॒तन्त्राज्ञानानद्ञीकारात् । ने
द्वितीयः, अज्ञानस्प जडत्वेन भासकत्वानुपप्ततेः | नापि तृतीयः, तन्त्र्व॑ हि
त्रिधा दृ्ट लोके-जन्यत्वेन, आभितल्ेन, भास्यत्वेन च। तत्र अन्यतमस्या5पि
प्रकारस्य अज्ञाननिरूपितस्य ग्रकृते असम्भवात्् तन्त्रत्वानुपपत्तिः। नच
अज्ञानात्मसम्बन्धवत् अज्ञानतन्त्र्व ब्रह्मात्ममेदस्य इति वाच्यम्, सम्बन्धरय
डी
यहाँपर जीव तथा त्रह्मके मेदका उपाधि भी अज्ञानकों ही मानना पढ़ेगा।
अन्तःकरण तो उपाधि हो नहीं सकता, क्योंकि वह अज्ञानका कार्य है. और
कादाचित्क हे अर्थात् सर्वदा नहीं रह सकता । यहाँपर प्रथम पक्ष तो ठीक नहीं
है, क्योंकि भेदोत्पत्तिसे पूर्व केवछ आत्मामें आज्ञान सिद्ध है, अतः उसको भेदकी
अपेक्षा नहीं है +। एवं दूसरा पक्ष मी नहीं बनता, क्योंकि अज्ञान जड़ है
और जड़ मासक नहीं हो सकता । इसी तरह तीसरा पक्ष भी ठीक नहीं है,
क्योंकि लोकमें तन्त्रत्व तीन प्रकारसे देखा गया है, जन्यत्वसे, आश्रयलसे और
भास्यत्वसे । इनमेंसे किसी प्रकारके भी अज्ञाननिरूपित तन्त्रवका अक्ृतमें
(जीवम्रह्ममेदम) सम्भव नहीं है, इसलिए तम्त्रतकी असिद्धि है ।
प्रक्ष--अज्ञान और आत्माके सम्बन्धी तरह बअद्यामभेद् भी अज्ञान-
तन्त्र हो सकता है #।
समाधान--नहीं, अमेद नहीं होगा, क्योंकि आवरणशक्तिप्राधान्यसे वह जीवब्रद्मविभागका
उपाधि द और विक्षेपशक्तिप्राधान्यसें ईश्वरका उपाधि दे, इसीलिए 'मायोपाधिरीश्वरः” कद्दा दे ।
| ताह्मये यह दे कि क्या अश्ञान प्रयोजनके बिना द्वी भेद करता है या प्रयोजनसे करेगा !
इनमें से पहला पक्ष तो ठीक नहीं है, क्योंकि निष्प्रोजत कारण नहीं होता ह्दै।
यदि प्रयोजनसे भेद कहें, तो पूछना यद्द दे कि वह प्रयोजन जीवका हे या अपना £ इसमें भी
पहला पक्ष ठीक नहीं दे, क्योंकि भेदकी उत्पत्तिके पहले जीवत्वका,द्वी अयोग है। कदाचित्
यह कद्दिये कि अपना प्रयोजन दे, तो वह भी आश्रग,और विपय लाभके लिए हे या किसी अन्य
प्रयोजनकें लिए? इसमें आश्रय और विपयका छाभ द्वी कददना होगा, वह तो भेदोतत्तिसे
पदिड्ले दी केवल आत्मामें सिद्ध है; फिर उसको आश्रय और विपयको क्या अपेक्षा ह्ः 6
# शग/--जैसे मद्दाकाशसे घटाकाश भिन्न है, यहाँपर घटाकाशके धर्मी ,निपर उसमें
विशेषणीभूत घटकों मी थर्मी मानते दें, वैसे दी 'भ्रक्षस्ने भिज्व अज्ञानी जीव है! यहाँपर भी
ग्रह्ममेव॒का आश्रय अज्ञान क्यों ले द्वोगा ६
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