ऋग्वेद संहिता | Rigved Sanhita

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Rigved Sanhita by रामगोविन्द त्रिवेदी वेदंतशास्त्री - Ramgovind Trivedi Vedantshastri

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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रे सानुवाद ऋेद-संदिता.. [१अ १ अध्या०, १ अन्लु० उपत्वाग्न दिवेदिये. दोपावस्तर्भिया बयम्‌। नमो भरन्त एमसि॥ ७ ॥ शाजन्तमध्यराणां गीपामतस्थ दौदिविम। वधमार स्व दम ॥ ८ ॥ स नः पितेव सुनवेपसे सूपायनों भव! सचस्वा ना स्वस्तयें ॥ ६ ॥ '. ४९ * ४ सूक्ती बायु भादि देवता हूँ । बायबायादि दर्शनमे सोमा अरदहता: । तेषां पाहि श्र थी हवेमू॥ १॥. बाय उयदेमिजरन्ते त्वामस्छा जरितारः | सुतसोमा अहबिंदः ॥ २ ॥ आिशिलनन लि ऑन 5 आल ह अल्‍ क लत न ल्‍ हक न जिलन+ +न्‍ ल्‍ ००० ++ “| ४ है अप्ति [मम अनुदित, दिननात, अन्तस्तझद साथ हुम्दें नमस्कार करते-करते तुम्हारे पास आते हैं। ८ है भ्ति! गुस प्रकाशमान, गशनक्षह, कापडोर शोतक क्र यतशाहामें बढ नशाठी हो । > ९. पित्त हद पुत्र पिताफों आसानी पा जाता है, उसी तदद हम भी तुम्दें पा सके या तुम इमारे अनायास-्लस्य : बनो और एमीरा मंगल कोजेगे! लिंग इमोर पास निषास करो । ( है प्रियदगन यायु ! आओ।। सोमस्‍स तैयार दै। इसे पान करों और पानके छिगे हमारा आह्वान सुनो । २ ३ है पायुदेय! बगश़ाता ललोगा छोग अमियुतर पा अमियखादि संस्कार-सप प्रकिया-विशेष हवस परिशोषित सोमरसफे पे शुस्दार उहश्यम सशुतिययत कद कर तुम्दार स्तथे करते है। हल है बन * जन जेट अनपरान कन्‍ण नल न * यास्यह निरण ( ७) * ॥ से मालय दोता है णि, आयोकि ,प्राधीन देयोर्म वायु भी हैं। अनेक मंत्रोंसे वायुकी स्मुति ये गयी है। हशनियो्मि मी सह बायु-पूता प्रय्षित है। ग्रीक भर रोमन छोग पान ( हा1) (संस्कृतयघत ) पल्ठसे बायु्ी इयासता को भे। परल भारतों, बनमान समय, एक ऐसा दढ़ है, जो थायु शब्दका भी अये हवर करता है। पद़ढी कषा ( ६ में खूद ) की रिपगीमे एम अपनी राय छिस चुके हैं। : सोम सम्मस्थमेँ यगेष्ट मतपाद द। एक इठगी राय हैं कि, सोमझताफों पीसनेसे सद्दापल छिग्े हुए दूधकी एह सादा रस निश्ला है, गिसे सहनेगे मादा निकशती है भर जो सोमरसके नामसे यज्ञ व्यवहुत द्ोता था। साफ जड़ा ये कि, सोबाप ढएझ गक्षिका भाग है, जिसे आयंठोग पीते भे। ऐसे आक्मगकी अनुकऋ्राणिकामें माटिल शागने डिया है कि, उत्दोंदि सोगरस सपार कोड पान ढियों शा। रानी छोग भी सोमरसका व्यवद्ार करते थे। उनके यहां हुसया नाम हम ” दै। टयिनी सोमस्‍्सझा झणा ही पान कर जाते भे। उनके जेंन्द भाषाफ ४ अवस्था ” अन्‍य इसकी प्रगंधा दियी है। बन्‍्दकों में रस-पैयुता मानक दमार यहा अवधयेद और गतयव बागगों चस्तृमाक्ा भी नाम सोम रखा गया है। विण्प्रागों गे द्वोनों अर्ग १1 घरा-संदरितामें ठिखा है कि, सोम नामकी ऐसी छता है, मिसके पन्‍्दरई पते हैं। बह खया पद्मादी कई दोनों प्षोमि पटगी-य़ती है। ओोख़ और मूसठसे एटकर इसका रस निकाछा जाता था। प्रात मंबन, माध्यन्दित सबने शौर गूतीय समन मत यशोमे इसका सु प्यवद्ार किया जाता था। सिसमूछरकी राय है कि, दिमाठयो; हशर, मध्य एमियामे, सोमटशा ऐोगी भी। मेंदम स्टायस्कीकी सम्मति है कि, वेद़का सोग और वाइपिहका ' वननक्ष ( 110 ण॑ 1000॥1॥० ) एक ही पल दै। . फठ्करोंक पेछ।छियरं नामक स्थान एक वार एक बनिय्राकछ आंगन मं पक सस्यापरोने पुषठ वो छा. दिखायी भी, जो फीक्षार्थ छान भेजी गयी थो और जिसे हुटित बिठ फम्पनीने




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