ऋग्वेद संहिता भाग 8 | Rigved Sanhita Bhag 8

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Rigved Sanhita Bhag 8 by रामगोविन्द त्रिवेदी वेदंतशास्त्री - Ramgovind Trivedi Vedantshastri

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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अ०, ५ म0, ९ अध्या०, ! अन्ु०0]) सटीक ऋग्वेद-संहिता १8 ७४०७० ७/७०६७०९-/ ७५४९ ४७८५४ ४५-#७००+, ४ ६७५/ हर. तवां विश्वे सनोषसो देवासों दृतमक्त सपय्यन्तरता के यज्ञ षु देवमोडते ॥१॥ देव॑ वो देवयज्ययाप्रिसीड़ीत मत्य! | समिद्ठ: शुक्र दीदिद्यतश्य योनिमासदः सप्तस्य योनिमासद/॥0॥ १९ भुक्ते ्ररिनि देवता | अप्के अपत्य विश्वतागा कृषि । भनुष्टुप भ्रौर पढक्त छद। प्र विश्वसामन्नत्रिवदचों पावकशोचिषे । यो अध्रेष्वीड्यों होता मन्द्रतमो विशि ॥१॥ न्यप्नि जातवेदसं दधाता देवशलिज्ञप्‌ । प्र यज्ञ एल्ानुषगद्या देवव्यचस्तमः ॥१॥ चिकित्विन्मनसं था देव मरतांस ऊतये । वरेण्यस्य तेवल इयानासो अमनन्‍्म्हि ॥१॥ अमे चिकिद्धयस्य न हुदं वचः सहस्य । त॑ ला सुशिप्र दप्पते स्तोमेवर्धन्यन्नयो गीमिः गुम्मन्यत्रयः ॥8॥ ३ है क्रान्तदर्शी अभ्नि, प्रतन्‍न होकरके सब देवोंने तुम्हें दूत बनाया था; इसीलिये परिचयां करनेवाले यजमान तुम्हारा ( अभ्नि देवका ), यह्षमें देवोंको चुलानेके लिये, यज्ण करते हैं। ५ है दीप्िशील भप्नि, मनुष्य लोग देवयशके लिये तुम्हारी स्तुति करते हैं। हृवि द्वारा प्रवृद्ध होकर तुम दीप होओ | तुम सद्यमूत सल ऋषिके स्वगंसाधन यज्ञस्थव्में देवरुपसे ठहरो । है विश्वसामा ऋषि, तुम अत्रिकी तरह शोधक दीछिवाले उन अग्निकी अर्चता करो, जो यद्ञमे सब ऋत्थिकों द्वारा स्तुत्य हैं, देवोंके आह्वता हैं. भर जो अत्यन्त स्तघनीय हैं । २ है यजमानो, तुम सब जातवेदा, चोतमाद्‌ और यज्ञकारक अपक्‍्निकों धारण फरो-संस्थापित करो, जिससे आज देवोंके प्रिय, यक्षसाधन और हम लोगोंके द्वारा प्रदत्त हृव्य अ्निकों प्राप्त करे। : > है दीप्तिशील अप्नि, तुम्हारा हृदय ज्ञानसम्पल्न है। तुम्हारे निकट हम छोग रक्षाके लिये उपस्थित होते हैं। हम मनुष्य सम्भजनीय भप्निकों तृष्त करनेके लिये स्तवन फरते हैं। . * ७४ है बलपुत्र अग्नि, तुम हमारे इस परिचरण स्तवनकों जानो । है सुन्दर हनू-नासिकावाले हे गृहपति, अत्निके पुत्र स्तोतों द्वारा तुम्हें वद्धित करते हैं और बचनों द्वारा अछड्डूगत करते है। ३




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