प्राकृत साहित्य का इतिहास | Prakrit Sahitya Ka Itihas (42)

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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है। संस्कृत साहित्य में काश्मीर के पास के प्रदेश के लिये द्रद्‌ का प्रयोग हुआ है | हु ७ भारतीय आयमभाषायें भारतीय आयेभाषाओ को तीन युगों सें विभक्त किया जाता हे। पहला युग आचीन भारतीय आयेभाषा का है जो लगभग १५०० ईसबी पूर्व से लेकर ४०० ईसबी पूषं तक चलता है| इस युग में वेदों की भाषा, तत्कालीन बोल्लणल की लोकभाषा पर आधारित संस्कृत महाकाव्यो की आया तथा परिष्कृत साहित्यिक संस्कृत का अन्तर्भोत्र होता-है। दूसरा मध्यकालीन भारतीय आयेभाषा का युग है. जो ४०० ईसवी पूर्व से ११०० ईसबी सन्‌ तक चलता है| यह युग प्राकृत भाषाओं का युग हे जिसमें पालि तथा प्राकृत--जिसमे उस काल की सभी जन- साधारण की बोलियों आ जाती हैं जो कि ध्वनितत्त्व के परिवत्तेन ओर व्याकरणसबधी भिन्नताये प्राच्नीन भारतीय आयेभाषाओं से जुदा एक नई भाषा को जन्म दे रही थी--का अन्तभोव होता ढे। तीसरा युग आधुनिक भारतीय आयभाषाओ का युग है जो ११०० ईंसवी सब से' लगा कर आज तक चलता हे । इसमें अपभ्रश और उसके उपभेदों का समावेश होता है | मध्ययुगीन भारतीय आयशाषायें सध्ययुगीन भारतीय आयभाषाओं को भी तीन भागों में विभक्त किया“जाता है। प्रथम भाग में पालि, शिलालेखों की प्राकृत, प्रादीनतम जेन श्ञागमों की अर्धभागधी, तथा अश्वघोष के नाठकों की प्राचीन आकृत का अन्तर्भाव होता है । दूसरे भाग में जेनो का धार्मिक और लौकिक साहित्य, क्‍लासिकल ससस्‍्क्ृत नाटकों की प्राकृत, हाल की सत्तसई, गुणाह्य की बहत्कथा, तथा प्राकृत के काव्य ओर व्याकरणों की मध्यकालीन' प्राकृत आती है। तीसरे भाग में अपश्रंश का समावेश होता है जो ईसबी सन्‌ की पॉचबीं-छठी शताब्दी से आरंभ हो जाता




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