विविध प्रसग 3 | Vividh Prasang 3

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Vividh Prasang 3 by अमृतराय - Amratray

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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राताश्ती में पारचात्य देशों में बिठने सुधार हुए है. उसमें भ्णिकांशा का बोजारोेपश उप प्यार्सों के ही हाय किया गया बा। डिक्ंस के प्राम समी उपन्यास टघ्सटाय के कई उत्तम उपस्पास॒मैक्सिम गोरी धुर्ममेग बासजक हागों मेरी करेल्ली थोसा प्रादि प्रधान उपभ्यासकारों से खुघारों हो के उद्ृश्य से भपने प्रस्थ रचे है। हाँ छुशल लेखक का यह कतब्य होता चाहिए कि बह सुधार के छोश में कथा की रोचकरता को कम म॑ होने दे । बह उपन्थास धौर प्रपने चरित्रों को उत्हौ परिस्थितियों में रखे जिनको वह सूभारना 'बाहंता हैं। यह मो परमागश्यक है कि वह सुघार के गिपय को सूब सोच से प्रौर प्रत्यक्ष से काम न से नहीं शो उसका प्रगाप कमी सफल स हो सफसा | सेलक बन्द प्रायः प्रपने काल के विधाता हीते है। उसमें प्रपत देश को प्पने समाज को दुख परन्‍्पाय तथा मिध्याभाद से सुक्स करने की प्रबल प्राकाक्षा होती है । ऐसी दशा मे प्रसम्भव है कि बह समाज को भ्रपमे सनमाने मास पर चसने दे भौर स्वयं लड़ा हाथ पर हाथ रखे देखता रहे । बह पर घौर कुछ नहीं कर छद्ता तो कश्म तो असा ही सकता है || रोक्सपियर श्लौर कासिवास के समय में सुधार की धावश्यकसा झाज से कम भ थी सेकिन रुस समय राजनीतिक क्लान का इतता प्रसार न था । रईस लोग भोम-पिन्नास करते थे कब्ि प्रौर लेखक उसकी बिश्ास-बृक्तियों को प्रौर उत्तजित करते थे । प्रजा पर सया गुज- रती ६, इधर किसी का प्याज न था । यह समय जीवन-सप्राम का है। प्राज हम थी शिक्षित कहलाते है, दटस्थ होकर भर्पाय द्वोते नहीं देख सकते । प्लाट का महत्व जात के बाद भब हम यह लागता चाहंगे कि भ्रष्छे प्साट म॑ कौन-कौन सी बातें होनी चाहिए । समाल्ोचर्कों के मताभुसार बे ये है--सरक्षता मौध्ि कसा रोचकठा | प्माट सरक्ष होता चाहिए। बहुत उम्तम््म हुआ पेजीशा शेतान की प्रात पढ़ पढ़ेते बरी उकठा बाम ऐसे उपस्यास को पाठक उम्रकर छोड़ देता है। एक प्रसंग प्रमी पूरा नहीं होते पाया कि डूसरा भा मया बह ध्मी प्र्रा ही बा कि तीसरा प्रधय प्रा पिया इछसे पाठक का वित्त अग्रा बाठा है। वेचीदा प्हाट की कश्पमा इतनी मुश्किश नहीँ है, शितती किसी सरसर प्लाट की। सरप्त प्साट में बढुत-से अरिषों की कल्पना तहीँ करनी पड़ती इसीलिए सेखक को भस्‍्रस्पसंस्यक अरिज्ञों के साव-विच्ञार, गुछ्य-रोप भ्राचार स्यबहार को सूक्ष्म कप से दिखाने का भ्वसर मिस जाता हैं, इसठे उसके चरितरों में सबीगता भा धाएँ है भ्ौर बह प्रठक के शूद्षप प्र भफना प्रच्छा मा शुए प्रस॒र घोड़ बाते है ) यह बात बहुसक््यक अरि्रों के साथ नहीं प्राप्द हो सकती । प्साट में मौलिकता का होना भौ लर्पी है। जिस बात था विपय को प्रस्य प्रेक्षर्गों ने शिस डाक्ा हो क्से शुध हेस्‍-फेर करके धपना प्लाट बनाने की चेप्ट करता प्नुपयुक्त है| प्रेम बियोम घ्रादि जिपय छठती बार शिपे था चुके है कि उसमे कोई सबीवता महीं बाकी रही | सब तौ पाठक कजानियों में शये शार्शो का सये शिच्वारा का नये अरित्रों का दिल्‍्दर्शत चाहते है । प्रता 'शुकबरहरत्तरो ॥ शपस्थास-रच्णा ह शुद




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