बाराम्बरी | Barambari

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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समानृ-पुत्र निर्ेज्ज अपस्त निष्प्रम मभिनेता?ै मनु मन में कोन अघ आँघो भर देता? मुझसे भी क्‍या मित्रमण्डछो सुखदायों है? वास्स्पामन-नम में क्यों यहू वदलों छाई हू? शूम्र मारती! बाण-नयन में दर्शन मर दो अन्तस्तर में सरछ अप्ठसा-चिन्तन भर दो कितना में रोक प्रवाह को? गति ही गति है सास-प्यास-परिहासयुक्ता यह केसी मति हू निर्मेयता के नाग-दश से सन-मन ब्याकुछ रह रह प्राण प्रकम्पित व्यम्य-यगररू में घुस-भल यष्ड यादर्छो के सेंग चन्द्र कहाँ छिप जाता? कोन राहु अन्तराकाप्त में सम फ्खातारी पुत्र न हुआ सुपुञत्र कहीं छो क्या कुछ-महिमा यदि पुनीत भावना महीं ठो ब्यर्थ मघुरिमा वश-दोप प्रजम्बक्तित रहे कामना जनक को घारण गरे हस क्‍यों पकिस पाँखे यक कोरे मरश-पूर्व प्रमिस माता सुत-स्वप्न-जयी थी शछित लाससा यशोराषि से स्फीतमयो थी मेंने बचन दिया था पुत्र महान बसेगा तिमिस-हरण के छिए ज्योति का बाण घनेगा कु प्रथम शलर्ग




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